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आगम
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आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः) भाग-४ अध्ययनं [१], नियुक्ति: [८४७], विभा गाथा [-], भाष्यं [१५०...], मूलं F /गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत
सत्राक
श्रीआव-दाभणइ-मए अन्नो दिट्ठो, ताहे विवादे सा भणति-अहं अप्पाणं सोहेमि, एवं करेहि, ताहे पहाया जक्खघरं गया, तत्था अकामश्यकमल- जो कारी सो दोण्हं जंघाणं अंतरेण बोलंततो लग्गइ, अकारी मुच्चइ, जवावधरं गच्छंती य तेण पुरिसेण पिसायरूवं|निर्जरायां य० वृत्ती काऊण अंतरा अवगृहिता, ततो सा तत्थ गंतूण जक्खं भणइ-जा मम मायापिईहिं दिष्णिलतो तं च पिसायं मोत्तूण जइमेण्ठः उपोद्घाते अण्णं जाणामि तो मे तुम जाणसित्ति भणंती झडत्ति अंतरेण बोलीणा, जक्खो विलक्खो चिंतेइ-पेच्छ केरिसं जायं ?,
अहयंपि वंचितोऽणाए, नत्थि सतित्तणं धुत्तीए, लोगेण उक्किठिकलयलो कतो सुद्धा सुद्धा एमत्ति थेरो सबेण लोगेण हीलि॥४६॥
४ातो, तस्स ताए अद्धितीए निद्दा नट्ठा, एवं रण्णा परंपरएण सुयं जहा थेगे न सुबइ, ततो हकारेऊण अंतेउरपालओ दकतो, अभिसेकं च हस्थिरयणं रण्णो वासघरस्स हेट्ठा बद्धं अच्छइ, देवी य हस्थिमेंठे आसत्तिया, नवरं रत्तिं हस्थिणा हत्थो
पसारितो सा ओयरिया, पुणरवि पभाए पडिबिलइया, एवं वच्चइ कालो, तंमि दिणे अतिचिरं जायंति इस्टिमेंटेण हत्थिसंकलाए आहया, सा भणइ-सो पुरिसो न सुयह मा रूसह, तं थेरो पेच्छइ, सो चिंतेइ-जइ एयातोपि एरिसीतो किंन । तातो अतिभदियातो इति निचिंतो सुत्तो, पभाए सबो लोगो उद्वितो, सो न उदुइ, रणो सिटुं, राया भणइ-सुवउ, सत्तमे दिवसे उद्वितो, रण्णा पुच्छितो, कहियं जहा एगा देवी, न याणामि कयरत्ति, सा एवं ववहरइ, ततो रण्णा भिंडमयो हत्थी कारावितो, सबातो अंतेउरियाओ भणियातो-एयरस अच्चणियं करेत्ता उलंडेह, सबाहिं उहंडितो, सा नेच्छइ, भण
॥४६॥ लइ--अहं बीहेमि, ताहे राइणा उप्पलेण आहया, मुच्छिया किल पडिया, ताहे से उवगयं जहा एसा कारित्ति, भणिया य मत्त
गयमारुहंतीए भिंडमयस्स गयस्स बीहंतीए। इह मुच्छिय उप्पलाहया तत्थ न मुच्छिय संकलाहया ॥शा जा पिट्टी से निभा
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04
दीप अनुक्रम
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