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आगम
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आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः) भाग-४ अध्ययनं [१], नियुक्ति: [९४९-९५१], वि०भा०गाथा , भाष्यं [१५१...], मूलं - /गाथा-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति:
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सत्राक
स्कारे
दीप अनुक्रम
श्रीआव- दि8 मक्कोडाण ठामं, अग्गि छुहिता समूलं उच्छेदियं, चाणकेण दिडो, रण्यो निवेदितो, रण्णा सहाविसा आरक्खत्तं दिन्नं, पारिणामिश्यकमल- सावीसत्था कया तेण सबे चोरा, अन्नया भत्तदाणेण वीसासेऊण सकुडुंबा मारिया ॥ एगस्थ गामे किल तिदंडिणा भिक्खा न क्या उदार यगिरीय-18 लद्धा, तत्थ आणा दिना, अंबगेहिं बंसी परिखेत्तवा, तेहिं विवरीयं कयं, सीहिं अंबमा परिक्खित्ता, ततो रुट्टो पलीवितो सबोकाहरणानि वृत्तौ नम- द गामो ॥ ततो कोसनिमित्तं परिणामिया बुद्धी पयहिया, सोवणं थालं दीणाराण भरियं, कूडपासेहिं जूयं रमइ, जो जिण
तस्स एयं, अह अहं जिणामि एक्को दीणारो दायबो, अइचिरंति अचं उवायं चिंतेइ, नगरप्पहाणाण भत्तं देइ, मजपाणं
च, मत्तेसु पणचितो भणइ-दो मज्झ धाउरत्ताउ कंचणकुंडिया तिदंडं च, राया मे बसवत्ती एस्थवि ता मे होलं वापहि || ॥५३२॥
k॥१॥ एवं भणिए अन्नो असहमाणो भणइ-गयपोयगस्स मत्तस्स उप्पइयस्स जोयणसहस्सं । पर पए सबसहस्सं एत्थकविता मे होलं वाएहि ।।२॥ अण्णो भणति-तिलआढगस्स उत्तस्स निष्फन्नस्स बहुसइयस्स ।तिले तिले सयसहस्सं एस्थवि विता मे होलं वाएहि ॥ ३ ॥ अन्नो भणइ-नवपाउसंमि पुण्णाए गिरिनदीए सिग्यवेगाए । एमाहियमेसेणं नवणीएण पालि
बंधामि, एथवि ता मे होलं वाएहि ॥४॥ अन्नो भणइ-जच्चाण नवकिसोराण तद्दिवसे जायमेत्ताण । केसेहिं नहं छाएमिट एत्थवि ता मे होलं वाएहि ॥ ५ ॥ अन्नो भणइ, दो मज् अस्थि रयणाणि सालिपसूई अ गद्दभिआ याछिया छिण्णा रुहइ पत्थवि ता मे होलं वाएहि ॥६॥ अन्नो भणइ-सइ सुकिलनिश्चसुगंधो भज्ज अणुषय नस्थि पवासो। निरिणो दुपंचस- x ॥५३२॥ इतो, एत्थवि ता मे होलं वाएहि ॥७॥ एवं नाऊण रयणाणि मग्गियाणि, सालीणं कोट्ठागाराणि भरियाणि, आसा एग-1 दिवसजाया मग्गिया, एगदिवसियं नवणीयं मग्गियं, एसा पारिणामिया चाणकस्स बुद्धी । थूलभद्दसामिस्स पारिणा
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