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आगम
(४०)
आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः) भाग-४ अध्ययनं [१], नियुक्ति: [९४९-९५१], विभा गाथा , भाष्यं [१५१...], मूलं - /गाथा-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
ACASSEURSESSAGRESS
अनुक्रम
जाणियं-जोग्गो, नएस विप्परिणमइत्ति, पच्छा चंदगुत्तो छुहाइतो, चाणको तं ठवित्ता भत्तस्स अतिगतो, वीहेइ य-मा एत्थ नजेजामो, डोंडस्स बाहिं निग्गयस्स पोर्ट अप्फुरियं दिट्ठ, सो पुच्छिओ-कत्थ भोयणं लग्भति ?, तेण भणियं-अमुगत्थ, 8/इयाणिं चेव दहिकूर जिमिय आगतो, ततोऽणेण तस्स छुरियाए पोर्ट्स फालिय, दधिकरं गहाय आगतो, जिमितो दारगो,
अनया अन्नत्थ गामे रतिं समुदाणेइ, थेरीए पुत्तभंडाणं वेवली परिवेसिया, एकेण माझे हत्थो छूढो, दद्धो रोयति, ताए|
भण्णइ-तुम चाणक्कमंगलो, पढम चेव हत्थं मझे छुहसि, पढमं पासाणि धिप्पंति, पच्छा मज्झभागो, चाणकस्स उवगयं ४ गतो हिमवंतकूड, तत्थ पषयगो राया, तेण समं मित्तया जाया, भणइ-नंदं ओयवित्ता सम समेण रजं विभजामो, चलिया, देसं लडंता एंति, एगध नगरं न पडद, पविट्ठो तिदंडी चाणक्को, वत्थूणि जोएड, इंदकुमारियातो दिट्ठातो, तासिंतणएण
पभावेण न पडइ, नियडीए नीयावियातो,पडियं नगरं, गया, पाडलिपुत्तं रोहियं, नंदो धम्मबारं मग्गइ, चाणकेण भणियं६) एगेण रहेण जं तरसि तं नीणेहि, दो भजातो एर्ग कण्णगं दवं च नीणेइ, कन्ना चंदगुत्तं पलोएइ, भणिया-जाहित्ति,15 हातीए चंदगुत्तरहं विलग्गंतीए नव अरगा रहस्स भग्गा, चंदगुत्तेण वारिया, चाणको भणइ-मा वारेह, नव पुरिसजुगाणि
तव वंसो होइ, अतिगदो, दो भागीकयं रजं ॥ एगा कण्णगा, कयगविसभाविया, तत्थ पचयगस्स इच्छा जाया, सा तस्स | ६ दिन्ना, अम्गिपरियंचणे विसपरिगतो मरिउमारद्धो, भणइ-वयंस! मरिजइ, चंदगुत्तो विसं रंभामित्ति ववसितो, चाणक्केण
मिउडी कया, नियत्तो, स मतो, दोवि रत्नाणि तस्स जायाणि ।। नंदमणूसा चोरियाए जीवंति, ततो चाणको चोरग्गाहं| भग्गइ, अण्णया बाहिरियाए गतो, तस्थ एगस्स नलदामस्स पुत्तो मक्कोडएण खइतो, तेण आरडियं, पहाविओ नलदामो,
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