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आगम
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आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः) भाग-४ अध्ययनं [१], नियुक्ति: [९४१-९४२], विभा गाथा , भाष्यं [१५१...], मूलं - /गाथा-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति:
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जो जस्स पढो सो तस्स दिनो, अन्ने भणति-दोण्हपि सीसाणि ओलिहावियाणि, जस्स उण्णामओ पडो तस्स उण्णातंतू विणिग्गया, जस्स सोत्तिओ तस्स सुत्ततंतू, ततो जो जस्स सो तस्स समप्पितो, कारणियाणमुप्पत्तिया बुद्धी ५। 'सरड'त्ति एगो पुरिसो सन्नं वोसिरइ, तस्स सपणं वोसिरंतस्स सरडाणं परोप्परं भंडताण एगो सरडो अहिट्ठाणस्स हिट्ठा | है बिलं पविट्ठो, पुच्छेण य छिको, घरं गतो, अद्वितीए दुबलो जातो, मम उदरे सरडो पविट्ठोत्ति, वेजो पुच्छितो, जइ
सय रूवगाणं देह तो पगुणीकरोमि, मन्निय, विजेण घडए सरडो छुढो लक्खाए विलिंपितो. विरेवणं दिन, घडगो ठाविओ, सन्ना वोसिरिया, दिवो तडफडतो, सो जातो लट्ठीभूतो, विजस्स उप्पत्तिया बुद्धी ॥ बिइयं सरडोदाहरण-भिक्
खुणा खुड्डगो पुच्छिओ-एस किं सीसं चालेइ ?, सो भणइ-किं भिक्खू भिक्खुणी वा, खुड्डगस्स उप्पत्तिया बुद्धी ६।। का कागति, तचणिएण चेल्लतो पुच्छितो-अरिहंता सवण्ण ?, चालतो भणइ-वाद, कित्तिया इहं कागा?, सहि कागसहस्सा
जाई वेण्णातडे परिवसंति । जइ ऊणगा पवसिया अम्भहिया पाहुणा आया ॥१॥ खुड्डगस्स उप्पत्तिया बुद्धी ॥ विइयं 6 कागोदाहरण-एगो वाणियओ, तेण बाहिं गएण निही दिट्ठो, तेण चिंतिय-मम घरे महिला पहाणा, सा रहस्सं धरेइ नवेति परिक्खेमि, ततो घरमागतो भणइ-पंडरगो मे कागो अहिट्ठाणं पविट्ठो, तीए सयज्झियाण कहियं, ताहिं नियभत्ताराणं जाव रायाए सुअं, ततो राइणा सिट्ठी हक्कारावितो, पुच्छियं, कहियं जहावडियं, तुट्ठो राया, दिण्णं निहाणं, मंती|81 कतो, एयस्स उप्पत्तिया बुद्धी ७ 'उच्चारे'त्ति एगस्स पिज्जाइयस्स तरुणी भज्जा, गार्मतरं निजमाणा अंतरा धुत्तेण सम | संपलग्गा, ततो तेर्सि दोण्हपि कलहो जातो, धिज्जाइओ भणइ-मे भज्जा, इयरो भणइ-ममं, सा पुच्छिया, धुत्तं भत्तारं
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