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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
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दीप अनुक्रम
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आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + वृत्तिः) भाग-४
अध्ययनं [१], निर्युक्तिः [९४१ ९४२] वि० भा० गाथा [-] भाष्यं [ १५१...], मूलं [- / गाथा-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक" निर्युक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः
श्रीआव श्यकमल
यगिरीय
॥५१९ ॥
यरो सुमिणंमि घरमागतो नियकरणं परिणन्तगो दिट्ठो, ततोऽणेण चिंतियं एतीए पसाएण महई विभूई भविस्सइ, पच्छा सोऔत्पत्तिवीहीए उबविट्ठो, तेण तमणण्णसरिसाए आगईए दद्रूण चिंतियं-एसो सो रयणायरो भविस्सइ, तप्यभावेण अणेण मिलक्खु- क्या उदाहरणानि हत्थातो अणग्वेज्जा रयणा पत्ता, पच्छा पुच्छितो-कस्स तुझे पाहुणगा ?, तेण भणियं तुज्झंति, घरं नीतो, कालेण से वृत्तौ नम- 2 धूया दिशा, भोगे भुंजति, कालेण य नंदाए सुमिणंम धवलगयपासणं, आवण्णसत्ता जाया, पच्छा रण्णा से कट्टवाला स्कारे पेसिया - सिग्धं एहित्ति, ततो सेणिओ नंदं आपुच्छति, भणति य-अम्हं रायगिहे नगरे पंडरकुड्डुगा पसिद्धा गोवाला, जड़ अम्हेहिं कर्ज सिग्धमेजाहित्ति, ततो गतो, देवलोगचुयगण्भाणुभावेण तीए दोहलो-वरहत्थिखंधगया अभयं सवजंतूण देमित्ति, सेट्ठी दवं गहाय रण्णो उबद्वितो, रायाणरण गहियं, पडिपुन्नो कतो दोहलो, जातो पुत्तो, अभओ नामं कर्य, पाढययसंपन्नो पुच्छर-मम पिया कहिंति ?, कहियं तीए, तत्थ वञ्च्चामोत्ति भणइ, पडिवण्णं तीए, सत्थेण समं वचंति, रायगिहस्स बहिया ठियाणि, अभओ गवेसओ गतो, राया मंतिं मग्गड़, कूबे खुड्डगं पाडियं, जो गिन्हइ हत्थेण तडे संतो तस्स राया वित्तिं देइ, अभरण दिनं छगणेण आहयं, सुके पाणियं मुकं, तडि संतरण गहियं, रायाए समीर्व गतो, पुच्छितो-को तुमं ?, तुज्झ पुत्तो, किह वा किं वा १, सर्व परिकहियं, तुट्ठो उस्संगे कतो, माया पविसिअंती मंडिउ - मारद्धा, अभरण वारिया, अमच्यो जातो, एसा एयस्स उप्पत्तिया बुद्धी ४ । पत्ति दो जणा व्हायंति, एगस्स पडो दढो एगस्स जुष्णो, जुण्णइतो दढं गहाय पट्टितो, इयरो मग्गइ न देइ, भणइ य एसेब मे पडो, राउले वबहारो जातो, कारणिगेहिं पुच्छियं एऐ पडा कीया घरवूया वा ?, दोहिवि कहियं-घरवुया, ततो महिला कत्ताविया, ततो सुत्ताणुसारेण ४
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