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आगम
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आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः) भाग-४ अध्ययनं [१], नियुक्ति: [९१८], वि०भा०गाथा , भाष्यं [१५१...], मूलं - /गाथा-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
सोयरिएमु मग्गियं, न लद्धं, डिंभरूवं मारियं, सुसंगियं, राया जिमिउमारद्धो, अतीव रुचिरं, राया पुच्छइ-कस्स एरिसं| मंसं?,न कहइ, निबंधे कहियं, पुरिसा दिन्ना, मारेहत्ति, नगरेण नातो, भिच्चेहि य रक्खसोत्ति महुँ पाएत्ता अडवीए मुक्को,
चञ्चरे ठितो, धयं गहाय दिणे दिणे माणुसं मारेइ, केई भणंति-विरहे जणं मारेइ, अन्नया तस्संतेण सत्थो जाइ, तेण मुत्तेण दन बेइतो, साहु प आवस्सयं करेंता सत्धातो फिडिया, ते दहण पिढतो लग्यो, तवेण न सकेइ अक्कमिड, चिंतेइ-अहो *महप्पहावा अमी साह, संविग्गो, धम्मकहणं, पवजा । अन्ने भणति-सो भणइ वचंते-ठाह, साहू भणंति-अम्हे ठिया, तुम
चेव ठाहि, चिंतेइ, साइसया आयरिया ओहिनाणी, केत्तिया एवं होहिंति, एवं दुक्खाय जिभिदियं ॥ द फासिंदिए उदाहरणं-वसंतउरे नयरे जियसत्तू राया, सुकुमालिया भजा, तीसे अतीव सुकुमालो फासो, राया रज VIन चिंतेइ, सो ताए निच्चमेव परिभुञ्जमाणो अच्छइ, एवं कालो बच्चाइ, मिचेहिं समं मंतिऊण तीए सह निच्छदो. प्रत्तो।
से रणे ठविओ, ते अडवीए वचंति, तिसाइया जलं मग्गइ, अच्छीणि से बद्धाणि, मा बीहेहित्ति, सिरारुहिर पन्जिया, रुहिरे मूलिया छूढा जेण न थिज्जइ, छुहाइया, ऊरुमंसं दिन्नं, ऊरुमंसं रोहिणीए रोहियं, जणवयं पत्ताणि, आभरगाणि
साचवियाणि, एगस्थ वाणियत्तं करेइ, पंगू य से वीहीए गोवगो घडितो, सा भणइ-न सक्कुणोमि एगागिणी गिहे चिद्विलं, ४ बिहजयं लभाहि । चिंतियं च णेण-निरवाओ पंगू सोभणों य, ततोऽणेण सो निडवालो निउत्तो, तेण गीयच्छलियकतिहाईहिं आवज्जिया, पच्छा सा तस्सेव लग्गा, भत्तारस्स छिदाण मग्गइ, जाहे न लहइ ताहे उज्जाणियाए गता. सो।
वीसत्थो वहं मज पाएत्ता गंगाए पक्खित्तो, सावि तं दर्ष खाइऊण ते वहइ, गायति य परे घरे, पुच्छिया भणइ-माया
अनुक्रम
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