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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[H]
दीप
अनुक्रम
[-]
उपोद्घातनिर्युतिः
॥ १८७॥
“आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + वृत्तिः) भाग-२
अध्ययनं [-],
निर्युक्तिः [१८४ ], वि०भा० गाथा [-], भाष्यं [ ३...], मूल [- / गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[४०], मूलसूत्र -[१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः
| गमरापप्पवाइयरवेणं संखपणवपडहमे रिझहरिखरमुहिहुडुक मुइंग दुंदुभिनिग्घोसनाइयरवेणं महया २ तित्थयराभिसेएणं अभिसिंचिति, तए णं सामिस्स भगवतो आदितित्थयरस्स अभिसेयंसि वट्टमाणंसि सबै इंदा छत्तचामरकलसधूवक डुच्छु|यपुष्पगंधमहालंकार हत्थगया हहतुट्टश्चित्तमाणंदिया जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया वज्जसूलपाणी पुरतो चिट्ठति, अने य देवा देवीतो य कलसहत्थगया भिंगारहत्थगया चामरहत्थगया जाव मल्लालंकार हत्थगया पंजलिउडा य पुरतो चिट्ठेति, अप्पेगइया देवा आसियसम्मज्जियोवलितं सम्मट्ठरत्थंतरावणवीहियं करेंति अप्पेगइया देवा मंचातिमंचकलियं करेंति, अप्पेगइया देवा नानाविहरागऊसियज्झयपडागमंडियं करेंति, अप्पेगइया गोसीससरसचंदणदद्दर दिन्नपं चंगुलितलं करेंति, अप्पेगइया उवचियचंदणकलसं करेंति, अप्पेगइया चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करेंति, अप्पेगइया | आसत्तोसतवि उलट्टवग्वारियमलदामकलावं करेंति, अध्पेगइया पंचवण्णसरससुरभिमुकपुप्फपुंजोवयारकलियं करेंति, | अप्पेगइया कालागुरुपवर कुंदुरुक्क तुरुक्क धूवमघमघंतगंधुज्जुयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं करेंति, अप्पेगइया हिरण्णवासं वासेंति, अप्पेगइया सुवण्णवासं वासेंति, अप्पेगइया रयणवासं वासेंति, अप्पेगइया वइरवासं वासंति, अप्पेगइया आभरणवासं वासंति, अप्पेगइया पत्तवासं वासंति, अप्पेगइया पुष्कवासं वासंति, अप्पेगइया फलवासं वासेंति, अप्पे गइया वण्णवासं वासेंति, अप्पेगइया चुण्णवासं वासेंति, अप्पेगइया गंधवासं वासेति अप्पेगइया हिरण्णविहिं भायंति जाव अप्पेगइया गंधविहिं भायंति, अप्पेगइया चत्थविहिं भायंति अप्पेगइया दुयं नट्टविहिं उपदंसंति, अप्पेगइया विलंबिर्य नट्टविधिं उवदंसंति, अप्पेगइया दुयबिलंबियं नडविधिं उवदंसंति, अप्पेगइया अंचियन विधिं उवदंसंति, अप्पे
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अच्युतादिकृतोऽभिषेक:
॥ १८७॥