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________________ आगम (४०) “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः) भाग-२ अध्ययनं H, नियुक्ति: [३४३-३४५], विभा गाथा , भाष्यं [४...], मूलं [- /गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: अपोद्धातनियुक्तिः ॥२२॥ प्रत सत्राक भवी ४ अणुषयाणि, परिपालयंती चउत्थछट्टमेहिं खमामि, एवं काले गते कयभत्तपञ्चक्खाणा रातो देवं परमर्दसणीय श्रेयांसपूर्व परसामि, सो भणइ-निन्नामिगे!चिंतेहि होमि एयस्स भारियत्ति ततो मे देवी भविस्समि, मया सह दिवे भोगे अँजेसि, तभवेषु निएवं वीत्तूण अइंसणं गतो, अहमवि परितोसविसप्पमाणहियया देवदंसणेण लभिज देवत्तंति चिंते ऊण समाहीए काल- नामिकागया, ईसाणे कप्पे सिरिप्पभविमाणे ललियंगस्स देवस्स अग्गमहिसी सयंपभा नाम जाया ओहिणाणोवयोगविण्णाय- स्वयंप्रभादेवभवकारणा, जहा-एस ललियंगो अहुणोववन्नो समाणो नियपरिचणं परिभाविन्तो देवीसु मज्झे सयंपभाए देवीए अझोववन्नो, सा आउक्सए चुया, ततो देवो पलविउमाढत्तो, सयंबुद्धो य महाबले कालगए गहियसामण्णो चिरकालं संजमं परिपालिऊण समाहिपत्तो कालगतो इहेच ईसाणे कप्पे इंदसामाणितो जातो, तेण विलवंतो संवोहितो, भणितोय-जहा धायइसंडे दीवे अवर विदेहे नंदिग्गामे निन्नामिगा कयभत्तपञ्चक्खाणा चिडइ,तं नियदसणेण पलोभेहि जेण कयनियाणा ते अग्गमहिसी सयंपभा जायइ, ततो अणेण नियदसणेण पलोभिया कयनियाणा इहमागयत्ति, सहरिसं सह ललियंगएण अच्छामि, अन्नया य सघसंपत्तीए कारणं भगवंतो जुगंधरायरियत्ति मुणिऊण ते वंदिउमवइन्ना, ते तंसमय तहेवी है अंबरतिलके पबए मणोरमे उजाणे सगणा समोसरिआ, ततोऽहं परितोसविसप्पियमुही तिगुणपयाहिणपुर्व नमिऊण पनिवेइ नाम, नट्टोवहारेण महिऊण गया सविमाणं, दिवे कामभोगे ललियंगएण सहिया निरुस्सुका बहुकालं अणुहवामि, ६|| देवो य सो ललियंगतो आउक्खएण चुतो, अम्मो न याणामि कत्थ गतो?, अहमवि तस्स वियोगदुहिया चुता समाणी है इहमागया, देवुज्जोयदरिसणेण समुप्पनजाइसरणा तं देवं मणमा परिवहंती मूअत्तणं पवना, किं तेण विणा करण दीप अनुक्रम * ** JanEducation vsansliterary.com ~170~
SR No.007202
Book TitleAagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages325
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size28 MB
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