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आगम
(४०)
प्रत सूत्रांक
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दीप
अनुक्रम
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मा.स्. ३८
“आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + वृत्तिः) भाग-२
अध्ययनं [-], निर्युक्तिः [ ३४३ - ३४५ ], वि० भा० गाथा [-] भाष्यं [४...] मूलं [- / गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र-[१] “आवश्यक” निर्युक्तिः एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः
मया जणो अंबरतिलगाभिमुहं बच्चंतो, गया तेण सहिया, दिट्ठो मया सिहर करेहिं गगणतलमित्र मिणितं समुज्जुतो अंब| रतिलको नाम पवतो, तत्थ जणो फलाणि गेन्हइ, मएवि य पक्कपडियाणि सादूणि फलाणि भक्खियाणि, रमणिज्जयाए य गिरिवरस्स सह जणेण संचरमाणी सदं सुइद्मणोहरं सुणामि, समणुसरंती गया कंचि पदेसं, दिट्ठा जुगंधरा नाम आयरिया विविहनियमधरा चउदसपुषी घडणाणोवगया, तत्थ बहवो समागया देवा मणुया य, ते तेसिं बंधमोक्ख विहाणं कहेंति, अर्हपि पाए णिवडिऊणं एगदेसे निसण्णा धम्मक सुणामि, पुच्छिया मए – भयवं ! अस्थि मम समो कोऽवि दुक्खओ जीवो जीवलोगे ?, ततो तेहिं भगवंतेहिं भणियं निन्नामिगे ! तुहं सदा सुहासुहा सुइपहमागच्छंति, वाणिवि सुंदरमंगुठाणि पाससि, गंधे सुभासुभे अग्घायसि, रसेवि मणुष्णामणुवणे आसाएसि, फासेवि इद्वाणिडे पडि - संवेदेसि, अस्थिय ते सीउण्हछुहाणं पडियारो, निद्दं सुहागयं सोवेसि, तमसि जोइपगासेण कळं कुणसि, नरए पुण नेरइयाणं | निच्चमसुभा सदस्वरसगंधफासा निप्पडियाराणि य परमदारुणाणि सीउण्हाणि तहा छुहापिवासातो य, न य खर्णपि निहासुहं तेसिं, ते य निच्चंधयारेसु नरगेसु चिमाणा दुक्खसयाणि दिवसा अणुवमाणा बहुं कालं गर्मति, तिरियावि | सपक्खपरपक्खजणियाणि दुक्खाणि सीउण्हखुहापिवासादीयाणि य अणुहवंति, तब पुण साहारणं सुहदुक्खं, केवलमन्नसिं | रिद्धिं परससाणा दुहियमप्पाणं तफेसि, ततो मए पणयाए जह भगह तहत्ति पडिस्सुयं तत्थ व धम्मं सोऊण केइ | पवइया के गिहिवासजोग्गाई सीलबयाई पडिवन्ना, ततो मए विन्नवियं-भयवं ! जस्स नियमस्स पालणेऽहं समत्था तं मे उबइसद, ततो मे तेहिं पंच अणुवयाई उवदिट्ठाणि, परितुट्ठा, बंदिऊण जणेण सह नंदिग्गाममागता, पाठेमि ताणि
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