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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[H]
दीप
अनुक्रम
[-]
उपोद्घातनिर्युक्तिः
॥ २२२ ॥
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“आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + वृत्तिः) भाग-२
अध्ययनं [-], निर्युक्तिः [ ३४३ - ३४५ ], वि० भा० गाथा [-] भाष्यं [४...] मूलं [- / गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः
तस्स वयणेण पुणरवि नंदिस्सरदीवे समयक्खेत्ते य कवजिणवंदणपूया चुता समाप्णा अंबुद्दीवे दीवे पुत्रविदेहे पुक्खलावइविजए पुंडरिगिणीए नगरीए वइरसेणचक्कवट्टिस्स गुणवतीए देवीए दुहिया सिरिमई नाम जाया, घाईजणपरिग्गहिया सुहेण वडिया कलातो गहियातो, अनया कयाइ पदोसे सवतोभद्दं पासायमधिरूढा पस्सामि नगरबाहिं देवसंपायें, ततो भए देवजाई सुमरिया, सुमरिऊण य दुक्खेणाहया, परिचारिगाहिं जलकणगसित्ता पञ्चागयचेयणा चिंतेमि - कत्थ मे पियो ललियंगतो देवोत्ति १, तेण य विणा किं जणेण आभट्ठेणंति मूकत्तणं पवण्णा, परियणो भणइ-इमीसे वाया अंभगेहिं निरुद्धा, ततो तिगिच्छेहिं होममंतरक्खाविहाणेहिं कतो महंतो पयतो, अहंपि मूकत्तणं न मुयामि, परिचारियाणं पुण लिहिऊणमाणतिं देभि, अन्नया पमयवणगयं ममं पंडिया नाम अम्मधाई विरहे भाइ-अहं ते घाई तो मे | कहेहि सम्भूयं ततो मया भणियं-अम्मो ! अस्थि कारणं जेणाहं मूयत्तणं पवण्णा, ततो सा तुट्ठा भणइ पुत्ति ! साहस में कारणं, ततो जहा भण्णसि तहा चेट्ठिस्सामि, ततो मया भणिया-सुणाहि-अस्थि धायईसंडे दीवे पुवबि| देहे मंगलावइविलए नंदिग्गामो नाम संनिवेसो, तत्थ अहं इतो तइयभवे दरिद्दकुले सुलक्खणसुमंगलाईणं छण्णं भगिजीणं कणिट्ठा जाया, न कयं च मे अम्मापिकहिं नामं, ततो निनामियत्ति पसिद्धिं गया, सकम्मपडिबद्धा य जीवामि, | अनया कयाइ ऊसवे इब्भगडिंभाणि नाणाविहभक्ख हत्थगयाणि सगिहेहिंतो निग्गयाणि पासेमि, वाणि दडूण भए माया जाइया अम्मो ! देहि मे मोयगं अन्नं वा भक्खं जेण डिंभेहिं समं रमामित्ति, तीए रुट्ठाए आहया निच्छूढा य गिहातो, कतो ते इहं भक्खा है, वचसु अंबरतिलकं पवयं तत्थ फळाणि खावसु मरसु वचि, ततो रोयंती निग्गया दिट्ठो
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168~
उदितांग
स्वयंप्रभे
श्रीमती,
निर्नामि
काभवः
॥ २२२ ॥
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