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आगम
(४०)
"आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्ति:) भाग-२ अध्ययनं H, नियुक्ति: [१८४], विभा गाथा H], भाष्यं [३...], मूलं - /गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत
नाव्यादि अलंकार रोपणादि
प्रपोदात- अप्पेगइया देवुकलियं देवकहकहयं देवदुहदुहयं करेंति, अप्पेगइया चेलुस्खेवं करेंति, अप्पेगल्या पंदणकलसहस्थगया नियुक्तिः अप्पेगइया भिंगारहत्वगया, एएणं अभिलावेणं आयंसा थालपाती वायकरगा रवणकरंडगा पुष्फचंगेरी जाव लोम
हत्थचंगेरी पुष्फपडलगजावलोमहत्वपडलग सीहासणछत्तचामरतेल्लसमुग्ग जाच अंजणसमुग्गयहत्थगया, अप्पेगइया ॥१०॥18 घूवकडच्छुय हत्थगया हतुट्ठचित्रमाणंदिया जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया आधावेंति परिधावेंति, तएणं से अचुइंदे।
सपरिवारे सामि तेणं महया तित्थगराभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं-विजएणं वद्धावेइ वद्धावित्ता ताहिं इटाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं वग्गूहि जयजयसई पउंजइ, तए णं तस्स अच्चुयस्स देविंदस्स अभियोगा सुवहुं अलंकारभंडं उवणेति, तए णं से अचुए देविंदे तप्पढमयाए पम्हलसुकुमालयाए सुरभीए गंधकासाईए गायाई लूहेइ लूहेत्ता सरसेण गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिंपइ अणुलिंपित्ता नासानीसासवायवोज्झं चक्खुहरं वणफरिसजुत्तं हयलालापेलवाइतिरेगं धवलं कणगखचियंतकम्मं देवदूसजुयलं नियंसेह नियंसित्ता कप्परुक्खगंपिव अलंकियविभूसियं करेइ करेत्ता नट्टविधि उवर्दसेइ, उवदंसित्ता अच्छेहि सण्हेहि रययामएहिं अच्छरसातंदुलेहिं भगवतो सामिस्स पुरतो अट्ठट्टमंगलगे आलिहति, तंजहा-दप्पणभद्दासणवद्धमाणवरकलसमच्छसिरिवच्छा । सोस्थियनंदावत्ता लिहिया अमंगलगा ॥१॥ लिहति लिहिऊण करेइ उवयारं, किं तं ?पाडलिमलियचंपकअसोगपुन्नागचूतमंजरिनवमालियावउलतिलगकणवीरकुंदकुज्जयकोरंटयदमणगवरसुरभिगंधगंधियस्स कषग्गाहगहियकरयलपन्भविष्पमुकंस्स कुसुमनिगरस्स जाणुस्सेहपमाणमे ओहनिकर करेचा चंदप्पभरयणवइरवेरु
20-04-7
दीप अनुक्रम
॥१८॥
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