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________________ स्वर्ग-नरक की सघन व्याख्या की है। आत्मा और पुनर्जन्म आदि की स्वीकृति के बिना तो जैन दर्शन चल ही नहीं सकता। महापुरुषों के भव-भवांतर की कथाएँ तथा पुनर्जन्म के आधार पर ही कर्म-कर्मफल का सिद्धांत जैन दर्शन स्वीकार करता है। आत्मा की स्वीकृति की बात तो भगवान महावीर से ज़्यादा कोई नहीं कर सकता। वे आत्मा की तीन अवस्थाएँ बतलाते हैं- बहिरात्मा, अंतरात्मा तथा परमात्मा। यदि जैन दर्शन से आत्मा शब्द को निकाल दें तो वह उद्देश्यहीन हो जाएगा और फिर शायद ही इस दर्शन में कुछ शेष रह जाए। 'वेदनिंदको नास्तिकः' जैसे आग्रहपूर्ण लक्षण के अनुसार भी भगवान महावीर को नास्तिक नहीं कहा जा सकता। जैनागमों को देखें तो महावीर ने कहीं भी वेदों की निंदा नहीं की है। परम वीतरागी भगवान जो राग-द्वेष से पूर्णतः मुक्त थे, वे किसी की निंदा कैसे कर सकते थे? वैदिक यज्ञादि में पशुबलि आदि की जो विकृतियाँ थीं, वे उन्हें उचित नहीं लगीं। धर्म-अधर्म का भेदज्ञान करवाना तो हर ज्ञानी व्यक्ति का कर्तव्य है। वैदिक परंपरा को भगवान महावीर का ऋणी होना चाहिए कि उन्होंने हिंसा जैसे महापाप से बचाकर यज्ञादि को पवित्र बना दिया, जो आज तक चल रहा है। _ 'वेद' शब्द का अर्थ 'ज्ञान' होता है और ज्ञान-दर्शन को आत्मा का लक्षण मानने वाले केवलज्ञानी भगवान महावीर ज्ञान की निंदा या निषेध कैसे कर सकते हैं? वेद में प्रतिपादित दर्शन या मान्यता से यदि कोई वैमत्य रखता है तो यह नास्तिकता का आधार इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि वैदिक दर्शनों की ही अनेक मान्यताएँ एक-सी नहीं हैं, प्रत्युत परस्पर विरोधी हैं और यदि किन्हीं कारणों से ऐसा है तो अवैदिक दर्शन कहे जाने वाले जैन दर्शन ने ऐसा कौन-सा गुनाह किया है जिस कारण कुछ चिंतक उसे नास्तिक कहने का दार्शनिक अपराध इस आधुनिक स्वतंत्र चिंतन के विकसित युग में भी करते जा रहे हैं। आधुनिक युग के प्रख्यात भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिन्स ने भी घोषणा की है कि इस ब्रह्मांड को ईश्वर ने नहीं बनाया। ___अतः ईश्वर के सच्चे स्वरूप की व्याख्यान करना जैन धर्म की अपनी मौलिक विशेषता है। ईश्वर को कर्ता-धर्ता मानना ही ईश्वर को मानना है। यह तो दोषपूर्ण लक्षण हुआ। अनेक बड़े दार्शनिकों ने यह माना है कि जैन धर्म-दर्शन आस्तिक है। अतः दर्शन के क्षेत्र में उन्होंने विभाजन करने के लिए वैदिक और अवैदिक का भेद किया है जिसमें जैन, बुद्ध और चार्वाक को अवैदिक माना है और शेष को वैदिक। यह विभाजन नास्तिक-आस्तिक की अपेक्षा अधिक समीचीन है। वैदिक पुराणों में चौबीस तीर्थंकरों को विष्णु का अवतार माना है। इस दृष्टि से भी देखें तो विचार करना चाहिए कि भगवान विष्णु के अवतारों द्वारा प्रतिपादित जैन दर्शन नास्तिक कैसे हो सकता है? 00 जैन धर्म-एक झलक
SR No.007199
Book TitleJain Dharm Ek Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherShantisagar Smruti Granthmala
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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