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________________ (16 जैन धर्म की आस्तिकता भारतीय दर्शन की एक परंपरा ऐसी भी है जो दर्शन को आस्तिक और नास्तिक दर्शन के रूप में विभाजित करती आई है। भगवान बुद्ध के दर्शन तथा चार्वाक दर्शन के साथ भगवान महावीर के दर्शन को भी इसी श्रेणी में रखकर एक ही तराजू में उन्हें भी तौल दिया गया है। किंतु नास्तिकता का जो आधार वहाँ बनाया गया है, उस आधार पर भगवान महावीर का दर्शन नास्तिक सिद्ध नहीं होता है। मुख्य रूप से जो आधार नास्तिकता का बनाया गया है, वह ईश्वर को नहीं मानना, लोक-परलोक को नहीं मानना, आत्मा या पुनर्जन्म को नहीं मानना और वेदों की निंदा आदि को बनाया गया है। यदि ईश्वर की मान्यता की बात लें तो जैन दर्शन में ईश्वर की स्वीकृति परमात्मा के रूप में है। अनंतानंत ईश्वर सिद्ध भगवान के रूप में लोकाग्र में बसे हुए हैं जो निराकर, शाश्वत, अनंत ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य से पूर्ण और स्वानुभूति में रमे हुए हैं। वे सभी कर्मों, बंधनों से रहित परम शुद्धोपयोग में रमने वाले पूर्णब्रह्म हैं। उनकी पूजा भी होती है, मंदिरों में सिद्धचक्र विधान जैसी महापूजाएँ लोग उन गुणों की प्राप्ति के लिए करते हैं। सिद्धावस्था से पूर्व की अवस्था में चार घातिया कर्मों का तपस्या के द्वारा नाश कर अरहंत भगवान पद पर स्थित ईश्वर की, तीर्थंकरों की पूजा प्रकर्ष रूप से जैन मंदिरों में चलती है। हाँ, यह बात ज़रूर है कि जैन दर्शन ईश्वर को सृष्टि का कर्ता-धर्ता नहीं मानता, परंतु यह तो उसकी ईश्वर के स्वरूप के संदर्भ में अन्य दार्शनिकों की तरह अपनी मौलिक व्याख्या है। ईश्वर है, यह सभी आस्तिक मानते हैं, लेकिन वह कैसा है? इस बारे में अलग-अलग दर्शन अलग-अलग व्याख्याएँ करते हैं। जैनदर्शन भी उसमें से एक है। निरीश्वर सांख्य और पूर्वमीमांसक आदि अनेक दर्शन वैदिक आस्तिक दर्शन कहलाने के बाद भी ईश्वर के बारे में अपनी अलग मान्यताएँ रखते ही हैं। भारतीय और पाश्चात्य परंपरा दोनों में ही एकेश्वरवाद, बहु-ईश्वरवाद, ईश्वर का व्यापकत्व-अव्यापकत्व, सगुणत्व-निर्गुणत्व, साकारत्व-निराकारत्व आदि अनेक मान्यताएँ प्रसिद्ध ही हैं। लेकिन ईश्वर को मानना और उसकी पूजा करना इस बात को लेकर जैन दर्शन दो राय नहीं रखता। अतः इस आधार पर महावीर के दर्शन को नास्तिक कहना गलत है। संस्कृत वैयाकरण पाणिनी के अनुसार जो लोक-परलोक को नहीं मानता, वह नास्तिक है। अतः इस आधार पर भी महावीर के दर्शन को नास्तिक कहना गलत है क्योंकि लोक-परलोक की व्याख्या भगवान महावीर ने बहुत की है और जैनाचार्यों ने तिलोयपण्णत्ति (त्रिलोकप्रज्ञप्ति) तथा तत्वार्थसूत्र जैसे ग्रंथों में । जैन धर्म-एक झलक ।
SR No.007199
Book TitleJain Dharm Ek Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherShantisagar Smruti Granthmala
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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