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________________ रत्नत्रय पर्व यह आध्यात्मिक पर्व भी वर्ष में तीन बार आता है। भाद्रपद, माघ और चैत्रसूदी 13 से 15 तक यह पर्व चलता है। जैन दर्शन में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यग्चारित्र को मोक्षमार्ग कहा गया है। इन्हें ही रत्नत्रय कहते हैं। इन तीन दिनों में इन्हीं तीन रत्नों की विशेष पूजाएँ होती हैं। लोग व्रत-उपवास भी करते हैं। अष्टमी-चतुर्दशी प्रत्येक माह की अष्टमी-चतुर्दशी स्वतः ही जैन धर्म के लिए एक व्रत अनुष्ठान पर्व है। जो लोग बाकी के दिनों में व्रत-उपवास, पूजन, पाठ आदि नहीं कर पाते हैं, वे इन दिनों में कर लेते हैं। इन दो तिथियों में ज़मीकंद तथा हरित पदार्थों का विशेष रूप से त्याग किया जाता है। इन पर्यों के अलावा भी जैन धर्म में अनेक पर्व हैं, जो तिथि क्रम से आते हैं तथा जिनका संबंध आत्मधर्म से है। इन पर्वो की अनेक पौराणिक कथाएँ भी हैं, जो इन पर्वो को मनाने के लाभ को बताती हैं तथा प्रेरणा देती हैं। विशेष तथा विस्तृत जानकारी के लिए जैन पूजन, व्रत, कथा संग्रह की प्रकाशित पुस्तकों का अध्ययन किया जा सकता है। 00 अनेकांत अनेकांत, मेरी दृष्टि में, सत्य को एक स्थिर जड़ तथ्य न मानकर सापेक्ष तरल गतिशील वस्तु मानता है। ज्ञान के क्रमिक विकास के लिए यही एकमात्र गतिशील मार्ग है। -प्रो० डॉ० दयानंद भार्गव, राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त संस्कृत तथा दर्शन के प्रकांड मनीषी । जैन धर्म-एक झलक
SR No.007199
Book TitleJain Dharm Ek Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherShantisagar Smruti Granthmala
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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