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________________ आशीर्वचन वर्तमान में पाश्चात्य संस्कृति के कारण धर्म से विमुखता और नैतिक मूल्यों के प्रति ह्रासता आ रही है। व्यक्ति धर्म को व्यर्थ की चीज़ कहकर दूर भाग रहा है। फलस्वरूप आज प्रत्येक व्यक्ति अशांत, दुःखी तथा तनावग्रस्त नज़र आ रहा है। तनावमुक्ति तथा अशांति दूर करने के लिए मुनियों-ऋषि-महर्षियों ने धर्म की छत्रछाया में, धर्म की शरण में जाने की चर्चा की है। धर्म वह परम रसायन है जो व्यक्ति को दुःखों से छुटकारा दिलाकर उत्तम सुख की प्राप्ति कराता है, जीवन जीने की कला सिखाता है, कषायों की ज़ंजीरों को तोड़ता है। मुनियों-ऋषि-महर्षियों ने धर्म की अनेक परिभाषाएँ निरूपित की हैं। अहिंसा, दया और करुणा धर्म है। * सदाचार की ओर कदम बढ़ाना धर्म है। समीचीन श्रद्धा होना धर्म है। कर्तव्यों का पालन करना धर्म है। वस्तु का स्वभाव धर्म है। उत्तम चारित्र ही धर्म है। * जो उत्तम सुख में स्थापित कर दे, वह धर्म है। जिनेंद्र प्रभु के द्वारा प्ररूपित धर्म जैन धर्म है, जो अनादिनिधन, वैज्ञानिक एवं अनेक विशेषताओं से युक्त है। जैन धर्मानुसार प्रत्येक आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के भाग्य का निर्माता है । व्यक्ति जन्म से नहीं, कर्म से महान बनता है। ईश्वर सृष्टि का निर्माता नहीं है। वह तो मात्र ज्ञाता - दृष्टा है, सर्वज्ञ है तथा अतींद्रिय आनंद में लीन है। आज विश्वशांति हेतु जैन धर्म के अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह, अनेकांतस्याद्वाद आदि सिद्धांतों की नितांत आवश्यकता है। वर्तमान समय में जैनधर्म-दर्शन को समझने की उत्सुकता जैनों के साथ-साथ अन्य धर्मानुयायियों में भी बढ़ी है। आज का शिक्षित वर्ग अब सिर्फ़ एक ही धर्म-दर्शन
SR No.007199
Book TitleJain Dharm Ek Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherShantisagar Smruti Granthmala
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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