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________________ || 21वीं शताब्दी का धर्म : जैन धर्म || -मुज़फ़्फर हुसैन, मुंबई हम यहाँ कर्मकांड के रूप में नहीं, बल्कि दर्शन के आधार पर यह कहना चाहेंगे कि 21वीं शताब्दी का धर्म जैन धर्म होगा। इसकी कल्पना किसी सामान्य व्यक्ति ने नहीं की है, बल्कि बर्नाड शॉ ने कहा है कि यदि मेरा दूसरा जन्म हो, तो मैं जैन धर्म में पैदा होना चाहता हूँ। रेवेरेंड तो यहाँ तक कहते हैं कि दुनिया का पहला मज़हब जैन था और अंतिम मज़हब भी जैन होगा। यू० एस०एस० के दार्शनिक बाट मोराइस का तो यहाँ तक कहना है कि यदि 'जैन धर्म को दुनिया ने अपनाया होता, तो यह दुनिया बड़ी खूबसूरत होती।' जैन, धर्म नहीं जीने का दर्शन है। सरल भाषा में कहूँ तो यह खुला विश्वविद्यालय है। आपको जीवन का जो पहलू चाहिए, वह यहाँ मिल जाएगा। मनुष्य के कष्टों का निवारण और अंतर्राष्ट्रीय आधार पर उसका उद्धार केवल (अनेकांतमयी) जैन दर्शन के माध्यम से ही संभव है। -जिनभाषित मासिक (सितंबर 2010, पृ० 26-27) || महावीर की अहिंसा का प्रभाव -देवर्षि कलानाथ शास्त्री, जयपुर प्रत्येक कार्य में अहिंसा का दृष्टिकोण (जो एक सिद्धांत मात्र न होकर जीवन के प्रति एक दृष्टिकोण है) पूरे देश के चिंतन पर छा गया था। मनु ने धर्म के लक्षणों में उन महाव्रतों को गिनाया, जो महावीर ने बताए थे। उससे पूर्व वैदिक कर्मकांड आदि में तथा धार्मिक दृष्टिकोण में अहिंसा का इतना प्रभाव एवं उसका पूर्ण क्रियान्वयन नहीं पाया जाता।' –'भारतीय संस्कृति : परिवेश और आधार' ग्रंथ से। | जैन धर्म की मौलिकता -डॉ० हर्मन जेकोबी (जर्मन विद्वान) जैन धर्म एक मौलिक पद्धति है जो सभी धर्मों से नितांत भिन्न और स्वतंत्र है। और इसलिए प्राचीन भारत के दार्शनिक विचार एवं धार्मिक जीवन के अध्ययन के लिए इसका अत्यंत महत्व है। (स्टडीज इन जैनिज्म, पृ० 60)
SR No.007199
Book TitleJain Dharm Ek Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherShantisagar Smruti Granthmala
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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