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________________ 10 स्वर्ग एवं नरक का रहस्य विश्व प्रसिद्ध व्याकरण के आचार्य पाणिनी ने कहा है कि जो लोक और परलोक को नहीं मानता, वह नास्तिक है। विश्व के सभी आस्तिक धर्म लोक तथा परलोक पर विश्वास रखते हैं। चार्वाक दर्शन ही एक ऐसा दर्शन है जो परलोक को नहीं मानता। सभी धर्मों तथा दर्शनों में स्वर्ग एवं नरक की अवधारणा में भी अंतर है। जैन धर्म भी लोक एवं परलोक इन दोनों की स्वीकृति देता है। यहाँ भी पुण्य एवं पाप का फल स्वर्ग एवं नरक के रूप में प्राप्त होता है। इस दृष्टि से जैन धर्म-दर्शन विशुद्ध आस्तिक धर्म-दर्शन है। किंतु दार्शनिक जगत् में कई लोग जैन धर्म जैसे आस्तिक धर्म-दर्शन को नास्तिक कह देते हैं, जो सर्वथा गलत है। इस विषय पर सोलहवें अध्याय में विमर्श किया गया है। प्रायः सभी धर्मों में कर्म सिद्धांत का प्रतिपादन है और जब कर्म सिद्धांत की स्वीकृति है तब स्वाभाविक रूप में कर्मों के अनुसार प्रत्येक जीव को उसके फलभोग के लिए लोक-परलोक, गतियों, पुनर्जन्म तथा स्वर्ग-नरक की मान्यताओं की स्वीकृति है। जैन आगमों और उसके परवर्ती साहित्य में ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक इन तीनों लोकों का तथा इनमें रहने वाले जीवों के संबंध में विस्तृत और सूक्ष्मतम प्रतिपादन किया गया है। ईसा की प्रथम शती में हुए प्रथम सूत्रकार आचार्य उमास्वामी ने अपने तत्वार्थसूत्र (मोक्षशास्त्र) नामक दस अध्याय वाले संस्कृत सूत्रग्रंथ में उपर्युक्त सा तत्वों के अंतर्गत तीन लोक संबंधी संपूर्ण, बहुत ही स्पष्ट और क्रमबद्ध अध्ययन प्रस्तुत किया है जो तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से सभी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैन धर्म एक निवृत्ति प्रधान धर्म है, अतः यहाँ जीवन का अंतिम और प्रधान लक्ष्य सभी कर्मों से मुक्त होकर शाश्वत सुख रूप मुक्ति प्राप्त करना है। इसे ही निर्वाण प्राप्ति या मोक्ष प्राप्ति कहते हैं जहाँ अन्य धर्मों में नरक से प्रत्येक जीव बचना चाहता है और स्वर्ग प्राप्ति की कामना करता है, वहीं जैन धर्म में नरक, स्वर्ग और इस मध्यलोक में ही परिभ्रमण करते रहना दुःख माना है। इसे भवभ्रमण या संसार भ्रमण भी कहते हैं। यह भव-भ्रमण कर्मबद्ध अवस्था का द्योतक है और संपूर्ण कर्मों से मुक्त होने पर ही जीव का भव-भ्रमण छूटता है तथा मोक्ष प्राप्त होता है। इस तरह चाहे नरक या स्वर्ग अथवा यह मध्यलोक, इन सबको संसार संज्ञा प्राप्त है अतः जैन धर्म जहाँ अधम गतियों से बचने की बात कहता है, वहाँ मोक्ष जैसे शाश्वत सुख प्राप्ति के 35 जैन धर्म एक झलक
SR No.007199
Book TitleJain Dharm Ek Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherShantisagar Smruti Granthmala
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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