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________________ सम्बन्धशक्ति ५५ में एक संबंध नाम की शक्ति भी है कि जिसके कारण यह आत्मा किसी भी परपदार्थ का न तो स्वामी है और न ही कोई पर पदार्थ ही भगवान आत्मा का स्वामी है। तात्पर्य यह है कि न तो इसके माथे पर के स्वामित्व का भार है और न अन्य की पराधीनता ही है। प्रश्न : संबंध तो भिन्न-भिन्न द्रव्यों के बीच होता है। अत: मैं ही स्व और मैं ही स्वामी - यह कैसे हो सकता है ? जब दोनों स्वयं ही हैं तो फिर इसे संबंध कहने से क्या साध्य है ? उत्तर : अरे भाई ! यह संबंधशक्ति यह स्पष्ट करने के लिए कही गई है कि आत्मा का पर के साथ कोई संबंध नहीं है। यह आत्मा पर से संबंधित न हो, अपने में ही सीमित रहे - यही कार्य है इस संबंधशक्ति का। मैं ही स्व और मैं ही स्वामी' – यह भी कथनमात्र ही है; क्योंकि मैं तो मैं ही हूँ, उसमें सम्पत्ति और स्वामी का विकल्प भी कथनमात्र है। ___ यह संबंधशक्ति पर के साथ संबंध बताने के लिए नहीं कही गई; अपितु पर के साथ सभी प्रकार के सभी संबंधों के निषेध के लिए कही गई है। पर से संबंध के निषेध पर बल देने के लिए स्वयं में ही स्वस्वामी संबंध बताया गया है। यहाँ यह समझना चाहिए कि मैं ही स्वामी और मैं ही स्व (सम्पत्ति) - इसका आशय यही है कि यहाँ स्व-स्वामी संबंध की कोई गुंजाइश नहीं है। इसी बात पर बल देने के लिए कि मेरा कोई स्वामी नहीं है, मैं किसी की सम्पत्ति नहीं हूँ और मैं भी किसी का स्वामी नहीं हूँ और कोई मेरी सम्पत्ति नहीं है; इसलिए यह कहा गया है कि मैं ही स्वामी और मैं ही स्व (सम्पत्ति)। यह न केवल संबंधशक्ति के बारे में समझना; अपितु सभी कारकों संबंधी शक्तियों के बारे में समझना चाहिए; क्योंकि मैं ही कर्ता, मैं ही कर्म, मैं ही करण, मैं ही संप्रदान, मैं ही अपादान और मैं ही अधिकरण
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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