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________________ ४७ शक्तियाँ और ४७ नय अध्यात्म में कारक छह होते हैं और व्याकरण के अनुसार विभक्तियाँ सात होती हैं। इनमें संबोधन को जोड़कर लोक में आठ विभक्तियों या आठ कारकों की भी चर्चा होती है। जो क्रिया के प्रति उत्तरदायी हो, जिसका क्रिया के साथ सीधा संबंध हो, उसे कारक कहते हैं। संबोधन का क्रिया के साथ कोई संबंध नहीं है; इसकारण उसे न तो कारकों में और न विभक्तियों में ही गिना जा सकता है। ___ संबंध का भी कोई सीधा संबंध क्रिया से नहीं होता और न वह क्रिया के प्रति उत्तरदायी ही है; अत: संबंध को भी कारक नहीं कहा जा सकता; फिर भी विभक्तियों में तो उसे शामिल किया ही गया है। अत: यहाँ भी शक्तियों के रूप में संबंध की चर्चा है। इतना विशेष है कि षट्कारकों संबंधी शक्तियों में तो कर्ता-कर्म संबंधी चर्चा है और इस संबंधशक्ति में स्व-स्वामी संबंध की बात कही गई है। इस संबंधशक्ति में यह बताया गया है कि इस भगवान आत्मा का स्वामी कोई अन्य नहीं, यह स्वयं ही है। यही स्व और यही स्वामी - ऐसा ही अनन्य स्व-स्वामी संबंध है। यह भी स्पष्ट ही है कि न तो इसका कोई अन्य पदार्थ स्वामी है और न यह भी किसी अन्य पदार्थ का स्वामी है। स्वयं की निर्मल पर्याय आत्मा की सम्पत्ति है और यह भगवान आत्मा ही इसका स्वामी है। इसप्रकार यह शक्ति आत्मा के एकत्व-विभक्त स्वरूप को बतलाती है। इस संबंधशक्ति के माध्यम से भगवान आत्मा का पर के साथ किसी भी प्रकार का कोई संबंध नहीं है - यह निश्चित हो जाता है। इसप्रकार इस संबंधशक्ति में यह बताया गया है कि अनंत शक्तियों
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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