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४७ शक्तियाँ और ४७ नय
४६. अधिकरणशक्ति भाव्यमानभावाधारत्वमयी अधिकरणशक्तिः ।
शक्तियों के कारण यह भगवान आत्मा अनन्तकाल तक स्वयं ही स्वयं को आनंद देता रहेगा और स्वयं ही आनंद लेता भी रहेगा । यह लेन देन कभी समाप्त नहीं होनेवाली अद्भुत क्रिया है, प्रक्रिया है ||४४-४५ ।।
इसप्रकार इन सम्प्रदान और अपादान शक्तियों की चर्चा के उपरान्त अब अधिकरणशक्ति का निरूपण करते हैं
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इस ४६वीं अधिकरणशक्ति की चर्चा आत्मख्याति में इसप्रकार की गई है - अधिकरणशक्ति आत्मा में भाव्यमानभाव के आधारपनेरूप है । इस अधिकरणशक्ति के कारण भगवान आत्मा सम्यग्दर्शन- -ज्ञानचारित्ररूप धर्म का आधार है ।
निज भगवान आत्मा के आधार से ही सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्ररूप निर्मलभावों की प्राप्ति होती है और ये भाव आत्मा के आधार से ही टिकते हैं।
सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र की उत्पत्ति और वृद्धि मोक्षमार्ग है और इन्हीं की पूर्णता मोक्ष है। अधिकरणशक्ति के कारण मोक्ष और मोक्षमार्ग की पर्यायें बिना किसी परपदार्थ और बिना किसी शुभभाव के आधार से आत्मा के आश्रय से आत्मा में सहज ही प्रगट होती हैं।
तात्पर्य यह है कि अनंत सुख-शान्ति प्रदान करनेवाला रत्नत्रयधर्म न तो उपवासादि क्रियाकाण्ड से प्राप्त होता है और न उत्कृष्ट से उत्कृष्ट शुभभाव से प्राप्त होता है; किन्तु अपने अनंत शक्तियों के संग्रहालय भगवान आत्मा के आश्रय से होता है; आत्मा के ज्ञान से होता है, श्रद्धान से होता है, ध्यान से होता है ।
उक्त सम्पूर्ण कथन का सार यह है कि यह भगवान आत्मा स्वयं के आधार पर प्रतिष्ठित है: इसे अन्य आकाशादि पदार्थों के आधार की