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________________ सम्प्रदान और अपादानशक्ति सम्यग्दर्शनादि निर्मल पर्यायों का कर्ता कौन है, कर्म कौन है, उन्हें प्राप्त करने का साधन क्या है, वे निर्मल पर्यायें प्राप्त किसको होंगी, वे कहाँ से आयेंगी और उनका आधार कौन है ? कर्ताशक्ति में यह बताया गया है कि उनका कर्ता यह भगवान आत्मा स्वयं है; क्योंकि इसमें एक कर्ता नाम का गुण (शक्ति) है; जिसके कारण यह आत्मा स्वयं ही उक्त निर्मलपर्यायोंरूप परिणमित होता है। कर्मशक्ति में यह स्पष्ट किया गया है कि आत्मा का निर्मल परिणाम ही आत्मा का कर्म है। करणशक्ति में यह स्पष्ट किया गया है कि आत्मा को सम्यग्दर्शन आदि निर्मल पर्यायों की प्राप्ति के लिए अन्य साधनों की अपेक्षा नहीं है; क्योंकि आत्मा में एक करण नामक गुण (शक्ति) है, जिसके द्वारा आत्मा इन्हें प्राप्त करता है, कर सकता है। अब सम्प्रदानशक्ति और अपादानशक्ति में यह बताया जा रहा है कि उक्त निर्मल पर्यायें आत्मा के लिए हैं, आत्मा को प्राप्त होती हैं और आत्मा में से प्रगट होती हैं। अपादानशक्ति के कारण आत्मा में से ही प्रगट होती हैं और सम्प्रदानशक्ति के कारण आत्मा के लिए ही हैं। सम्यग्दर्शनादि निर्मल पर्यायें आत्मा के लिए आत्मा में से प्रगट होकर स्वयं आत्मा को ही प्राप्त होती हैं - ऐसी अद्भुत वस्तुस्थिति है। ___ उक्त दोनों शक्तियों के स्पष्टीकरण में यह बताया गया है कि आत्मा का ज्ञान, आनन्द आत्मा में से ही आता है और आत्मा को ही दिया जाता है। दातार भी आत्मा और दान को ग्रहण करनेवाला भी आत्मा। ज्ञान और आनन्द न तो पर में से आते हैं और न पर को दिये ही जाते हैं। इसीप्रकार यह आत्मा न तो इन ज्ञान और आनन्द को पर से ग्रहण करता है और न ही पर को दे ही सकता है। जो कुछ भी इसका लेनादेना होता है, वह सब अपने अन्दर ही होता है, अन्तर में ही होता है। इन ज्ञान और आनन्द का पर से कुछ भी लेना-देना नहीं है। इन दोनों
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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