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करणशक्ति
४३. करणशक्ति भवद्भावभवनसाधकतमत्वमयी करणशक्तिः।
कर्मशक्ति और कर्तृत्वशक्ति के निरूपण के उपरान्त अब करणशक्ति की चर्चा करते हैं -
कर्मशक्ति और कर्तृत्वशक्ति के निरूपण के उपरान्त अब करणशक्ति की चर्चा करते हैं।
४३वीं करणशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है - करणशक्ति प्रवर्तमान भाव के होने में साधकतममयी है।
इस भगवान आत्मा में कर्मशक्ति और कर्तृत्वशक्ति के समान एक करण नामक शक्ति भी है। जिसके कारण यह भगवान आत्मा सम्यग्दर्शनादि निर्मल पर्यायों को प्रगट करता है, कर सकता है। . कर्तृत्वशक्ति के कारण आत्मा अपने निर्मल भावों का कर्ता है, कर्मशक्ति के कारण निर्मल परिणामों को प्राप्त करता है और करणशक्ति के कारण वह निर्मल परिणामों का स्वयं कारण भी है। कर्ता भी स्वयं, कर्म भी स्वयं और करण भी स्वयं - इसप्रकार निर्मल पर्यायों के प्रगट करने में वह पूर्णतः स्वाधीन है।
सम्यग्दर्शनादि निर्मल भावों के लिए उसे अन्य की ओर देखने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि निर्मल पर्यायों को प्रगट करने की पूर्ण सामर्थ्य इन कारक संबंधी छह शक्तियों के माध्यम से उसमें ही विद्यमान है। आत्मा की अनंत स्वतंत्रता की घोषक ये शक्तियाँ आत्मा की अपनी निधियाँ हैं।
उक्त विश्लेषण का तात्पर्य यह है कि सम्यग्दर्शन से लेकर सिद्धदशा तक की समस्त निर्मल पर्यायों को प्राप्त करने का साधन इस शक्ति के माध्यम से यह आत्मा स्वयं ही है; न तो परपदार्थरूप निमित्त साधन हैं और न शुभरागरूप नैमित्तिक भाव ही साधन हैं। अत: आत्मा की