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________________ ४८ ४७ शक्तियाँ और ४७ नय कारण ही यह भगवान आत्मा अपने सम्यग्दर्शनादि निर्मल परिणामों को प्राप्त करता है और उन्हें करता भी है। कर्मशक्ति के कारण उन्हें प्राप्त करता है और कर्तृत्वशक्ति के कारण उन्हें करता है। यह भगवान आत्मा न तो पर को प्राप्त करता है और न पर का कर्ता ही है। इसीप्रकार रागादि-विकारी भावों को प्राप्त करे या करेऐसी भी कोई शक्ति आत्मा में नहीं है। हाँ, अपने सम्यग्दर्शनादि निर्मल परिणामों को प्राप्त करने और करने की शक्ति इसमें अवश्य है। निर्मल परिणामों को करने की शक्ति का नाम कर्तृत्वशक्ति है और इन्हें प्राप्त करने की शक्ति का नाम कर्मशक्ति है। तात्पर्य यह है कि अपने निर्मल परिणामों को करने या प्राप्त करने के लिए इस भगवान आत्मा को पर की ओर झाँकने की कोई आवश्यकता नहीं है। ___ यहाँ कर्म शब्द का प्रयोग न तो ज्ञानावरणादि द्रव्य के अर्थ में हुआ है और न रागादि भावकर्मों के अर्थ में ही हुआ है तथा कर्म शब्द का अर्थ निर्मल परिणमनरूप कार्य भी नहीं है। ___ यहाँ कर्म शब्द का प्रयोग आत्मा की अनादि-अनंत शक्तियों में अथवा यहाँ प्रतिपादित ४७ शक्तियों में से एक कर्म नामक शक्ति के अर्थ में है अथवा कर्ता, कर्म, करण आदिकारकों में समागत कर्म के अर्थ में है। इसप्रकार इन दोनों शक्तियों के विवेचन में यह स्पष्ट किया गया है कि इस भगवान आत्मा में एक कर्म नाम की ऐसी शक्ति है कि जिसके कारण यह आत्मा स्वयं के निर्मल परिणामों को प्राप्त करता है और एक कर्तृत्व नाम की शक्ति ऐसी भी है कि जिसके कारण यह आत्मा स्वयं के निर्मल परिणामों को करे अथवा उनका कर्तृत्व धारण करे। स्वयं ही कर्ता और स्वयं ही कर्म - इसप्रकार कर्ता-कर्म का अनन्यपना है। तात्पर्य यह है कि इस भगवान आत्मा को न तो कुछ करने के लिए अन्यत्र जाना है और न कुछ पाने के लिए पर की ओर झाँकना है। सब कुछ अपने अन्दर ही है।।४१-४२।।
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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