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नियतिनय और अनियतनय
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स्वभाव है। त्रिकाल एकरूप रहनेवाले स्वभाव को नियतस्वभाव कहते हैं और परिवर्तनशील स्वभाव को अनियतस्वभाव कहा जाता है।
उष्णता अग्नि का त्रिकाल एकरूप रहनेवाला स्वभाव है; अतः वह उसका नियतंस्वभाव है। इसीप्रकार चैतन्यभाव-ज्ञानानन्दस्वभावजानना - देखना भगवान आत्मा का त्रिकाल एकरूप रहनेवाला स्वभाव है, इसलिए वह भगवान आत्मा का नियतस्वभाव है।
नियत अर्थात् निश्चित, कभी न बदलनेवाला, सदा एकरूप रहनेवाला और अनियत अर्थात् अनिश्चित, निरन्तर परिवर्तनशील ।
पानी का नियतस्वभाव तो शीतलता ही है, पर अग्नि के संयोग में आने पर गर्म भी हो जाता है। यह गर्म होना यद्यपि उसका नियतस्वभाव नहीं है, तथापि उसका वह स्वभाव ही न हो - ऐसी बात भी नहीं है; क्योंकि उसके स्वभाव में यदि गर्म होना होता ही नहीं तो वह अग्नि के संयोग में भी गर्म नहीं होता। अग्नि के संयोग में गर्म होना भी उसके स्वभाव का ही अंग है। उसके इस स्वभाव का नाम ही अनियतस्वभाव है, परिवर्तनशील स्वभाव है, पर्यायस्वभाव है।
नका गर्म होना उसका द्रव्यगत स्वभाव है; अतः नियतस्वभाव है और पानी का गर्म होना उसका पर्यायगत स्वभाव है; अतः अनियत स्वभाव है। इसीप्रकार भगवान आत्मा का नियतस्वभाव तो चैतन्यभाव ही है, जानना - देखना ही है; पर वह कर्मादिक के योग में रागादिरूप या मतिज्ञानादिरूप या मनुष्यादिरूप भी परिणत हो जाता है। रागादिरूप परिणमित होना भगवान आत्मा का नियतस्वभाव नहीं है; तथापि उसका वह स्वभाव ही न हो ऐसी बात भी नहीं है; क्योंकि उसके स्वभाव में यदि राग-द्वेष-मोहरूप परिणमित होना होता ही नहीं तो कर्मादिक के योग में भी वह रागादिरूप परिणमित नहीं होता । अतः कर्मादिक के योग-वियोग में रागादिरूप या मतिज्ञानादिरूप परिणमित होना भी उसके स्वभाव का ही अंग है। भगवान आत्मा के इस स्वभाव का नाम अनियतस्वभाव है, परिवर्तनशील स्वभाव है, पर्यायस्वभाव है ।
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