________________ कार्य उत्पन्न हो। जब सोने से पूर्व समय का ज्ञान नष्ट ही हो गया है, तब वह प्रातःकाल के प्रबोध का कारण कैसे हो सकता है। इसी प्रकार आगामी काल में होने वाला मरण जब अभी हुआ ही नहीं है, तब वह इस समय होने वाले अपशकुनादि का भी कारण कैसे हो सकता है, क्योंकि आपके द्वारा दिये गये दोनों उदाहरणों में काल का अंतराल बीच में पाया जाता है और जहाँ काल का अंतराल पाया जाता है, वहाँ कार्य कारण भाव हो नहीं सकता है। कार्य कारण भाव मानने के खण्डन में हेतु - तद्वयापाराश्रितं हि तद्भावभावित्वम्॥ 59 // सूत्रान्वय : तत् = उस कारण के, व्यापार = व्यापार के, आश्रितं = आश्रित, हि = ही (यस्मात्), तद्भावित्वम् = कार्य का व्यापारपना। सूत्रार्थ : कारण के व्यापार के आश्रित ही कार्य का व्यापार हुआ करता है। संस्कृतार्थ : यस्मात्कारणात् कार्यकारणभावः कारण व्यापाराश्रितो विद्यते ततो मरण जाग्रद्बोधयोरपि नारिष्टबोधौ प्रति हेतुत्वम् अतिव्यवहितपदार्थानां कारणव्यापारसापेक्षाभावात्। ___टीकार्थ : जिस कारण के होने पर कार्य का होना / कार्य कारण के व्यापार के आश्रित है इसलिए अतीत जाग्रतबोध और भावी उद्बोध तथा भावीमरण और वर्तमान अरिष्ट में कार्यकारण भाव नहीं है, क्योंकि अतिव्यवहित पदार्थों में कारण के व्यापार का आश्रितपना नहीं होता है। 250. सूत्र में हि शब्द किस अर्थ में है ? यहाँ हि शब्द यस्मात् के अर्थ में है। 251. तद्भाव भावित्व किसे कहते हैं ? कारण के होने पर कार्य का होना तद्भावभावित्व है। सहचर हेतु का भी स्वभाव कार्य और कारण हेतुओं में अन्तर्भाव नहीं होता है। यह प्रदर्शित करते हैं - 97