________________ ___ संस्कृतार्थ : साध्यसाधनयोस्तादात्म्यसम्बन्धे हेतोः स्वाभावहेतावन्तर्भावो भवेत् / तदुत्पत्तिसम्बन्धे च कार्यहेतोः कारणहेतौ वान्तर्भावो विभाव्यते / न च पूर्वोत्तरचारिणो तदुभयसम्बन्धौ स्तः, कालव्यवधाने सति तदुभय सम्बन्धानुपलब्धेः / पूर्वोत्तरचारिणोश्चान्तर्मुर्हतप्रमाणं कालव्यवधानं सुनिश्चितम् / अतश्च तयोर्न स्वभावादिहेतुष्वन्तर्भावः / इति तौ तेभ्यः पृथगेव हेतू प्रत्येतव्यौ। टीकार्थ -साध्य साधन में तादात्म्य सम्बन्ध के होने पर स्वभाव हेतु में अन्तर्भाव होता है और तदुत्पत्ति सम्बन्ध के होने पर कार्य या कारण हेतु में अन्तर्भाव होता है। पूर्वचर और उत्तरचर हेतु में तादात्म्य और तदुत्पत्ति सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि काल का व्यवधान होने पर इन दोनों सम्बन्धों की उपलब्धि नहीं होती है। पूर्वचर और उत्तरचर में अन्तर्मुहूर्त प्रमाण काल का व्यवधान सुनिश्चित है और इसलिए इन दोनों हेतुओं का स्वभावादि तीनों में से किसी भी हेतु में अन्तर्भाव नहीं होता। इस प्रकार पूर्वचर और उत्तरचर हेतु पृथक् ही जानना चाहिए। 248. तादात्म्य सम्बन्ध किसे कहते हैं ? ज्ञान और आत्मा जैसे दो अभिन्न पदार्थों में जो सम्बन्ध होता है, उसे तादात्म्य सम्बन्ध कहते हैं। 249. तदुत्पत्ति सम्बन्ध किसे कहते हैं ? एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ की उत्पत्ति को तदुत्पत्ति सम्बन्ध कहते हैं। विशेष : एक मुहूर्त के बाद रोहिणी नक्षत्र का उदय होगा, क्योंकि अभी कृतिका का उदय हो रहा है। यह पूर्वचर हेतु का उदाहरण है। एक मुहूर्त के पूर्व ही भरणि का उदय हो चुका है, क्योंकि अभी कृतिका का उदय हो रहा है, यह उत्तरचर हेतु का उदाहरण है। इस उदाहरण से स्पष्ट है कि एक नक्षत्र के बाद दूसरे नक्षत्र के उदय में अन्तर्मुहूर्त का व्यवधान है। अतः इनमें न तो तादात्म्य सम्बन्ध संभव है और न तदुत्पत्ति सम्बन्ध, जिससे स्वभाव हेतु में अन्तर्भाव किया जा सके ? अतः पूर्वचर और उत्तर चर ये दोनों हेतु भिन्न ही हैं, यह सिद्ध हुआ। 95