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________________ प्रकार से रूप के अनुमान की इच्छा करने वाले बौद्धों को कोई कारण रूप हेतु इष्ट ही है, क्योंकि पूर्वकाल के रूप क्षण का सजातीय अन्य रूप क्षण के साथ कोई व्यभिचार नहीं पाया जाता है। इसके द्वारा यह कहा गया जो जिस कारण में सामर्थ्य की प्रतिबंध नहीं है और अन्यकारण अविकलता (पूर्णता) है। विशिष्ट कारण कार्योत्पत्ति का नियामक होने से अवश्य ही कार्य का अनुमापक होता है यह भाव है। 247. बौद्ध लोग किस हेतु को नहीं मानते ? बौद्ध लोग कारण रूप हेतु को नहीं मानते। 248. बौद्ध लोग कारण रूप हेतु को इष्ट कैसे मानते हैं ? वह इस प्रकार किसी व्यक्ति ने गहन अंधकार में आम को चखा। वह उसके मीठे रस के स्वाद से विचारता है कि इसका रूप पीला होना चाहिए। यहाँ वर्तमान रस सहकारी कारण से उत्पन्न हुआ है। अतः पूर्वरूप क्षण सजातीय क्षण रूप कार्य की उत्पत्ति में सहायक होता है। अतः कारणभूत पूर्वरूप क्षण से कार्य स्वरूप रूप क्षण का अनुमान किया जाता है। इस प्रकार बौद्ध रस से एक सामाग्री के द्वारा रूप का अनुमान करते हैं इससे सिद्ध होता है कि कारण रूप हेतु माना ही है। अब पूर्वचर और उत्तरचर हेतु भी भिन्न ही है, क्योंकि उनका स्वाभाव हेतु कार्य और कारण हेतुओं में भी अन्तर्भाव नहीं होता है। यह बात आचार्य दिखलाते हैं - न च पूर्वोत्तरचारिणोस्तादात्म्यं तदुत्पत्तिर्वा कालव्यवधाने तदनुपलब्धेः॥ 57 // सूत्रान्वय : न = नहीं, च = और, पूर्वोत्तरचारिणो = पूर्वचर और उत्तरचर का, तादात्म्यं = तादात्म्य सम्बन्ध, वा = और तदुत्पत्तिः = तदुत्पत्ति, कालव्यवधाने = काल का व्यवधान होने पर, तत् = उन दोनों सम्बन्धों की, अनुपलब्धिः = उपलब्धि नहीं है। सूत्रार्थ : पूर्वचर और उत्तर चर हेतुओं का साध्य के साथ तादात्म्य सम्बन्ध नहीं है, तदुत्पत्ति सम्बन्ध भी नहीं है, क्योंकि काल का व्यवधान होने पर इन दोनों सम्बन्धों की उपलब्धि नहीं होती। 94
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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