________________ आदि पदों के साथ द्वन्द्व समास करना चाहिए। कारण हेतु के विधि साधकपना - रसादेकसामग्र्यनुमानेन रूपानुमानमिच्छद्भिरिष्टमेव किञ्चित् कारणं हेतुर्यत्र सामर्थ्याप्रतिबंधकारणान्तरावैकल्ये॥ 56 // सूत्रान्वय : रसात् = रस से, एक = एक, सामग्री, अनुमानेन = अनुमान द्वारा, रूपानुमानम् = रूप का अनुमान, इच्छद्भिः = स्वीकार करने वाले, इष्टम् = इष्ट, एव = ही, किञ्चित् कारणं = कोई विशिष्ट कारण, हेतु = हेतु, यत्र = जिसमें, सामर्थ्य = सामर्थ्य की, अप्रतिबंध = रुकावट नहीं है, कारणान्तरा = दूसरे कारणों की, अवैकल्ये = विकलता नहीं है। सूत्रार्थ : रस से एक सामाग्री के अनुमान द्वारा रूप का अनुमान स्वीकार करने वाले बौद्धों ने कोई विशिष्ट कारण रूप हेतु माना ही है, जिसमें सामर्थ्य की रुकावट नहीं है और दूसरे कारणों की विकलता नहीं है। ___ संस्कृतार्थ : सौगतः प्राह - विधिसाधनं द्विविधमेव, स्वभावकार्यभेदात्। कारणस्य तु कार्याविनाभावाभावाद् अलिंगत्वम् / नावश्यं कारणानि कार्यवन्ति भवन्तीति वचनादिति / तदप्यसंगतम् - आस्वाद्यमानाद्धि रसात् तज्जनिका सामग्री अनुमीयते ततो रूपानुमानं जायते, प्राक्तनो रूपक्षणः सजातीयं रूपक्षणान्तरलक्षणं कार्यं कुर्वन्नेव विजातीयरसलक्षणं कार्यं कुरुते इति रूपानुमानमिच्छद्भिः सौगतैः किचित्कारणं हेतुत्वेनाभ्युपगतमेव रूपक्षणस्य सजातीयरूपक्षणान्तराव्यभिचारात् / एतेनेदमुक्तं यत् यस्मिन्कारणे सामर्थ्याप्रतिबंधः कारणान्तर विकलता च नास्ति तद्विशिष्टकारणं कार्योत्पत्तिनियामकत्वादवश्यमेव कार्यानुमापकं भवतीतिः भावः / टीकार्थ : बौद्ध कहते हैं - विधि साधक हेतु दो प्रकार का ही है - स्वभावहेतु और कायहेतु, क्योंकि कारण का कार्य के साथ अविनाभाव का अभाव होने से हेतु नहीं माना जा सकता। कारण कार्य वाले अवश्य हों ऐसा नहीं है इस प्रकार वचन है। जैन - उन बौद्धों का ऐसा कहना ठीक नहीं है। क्योंकि आस्वाद्यमान रस से उसकी उत्पादक सामग्री का अनुमान किया जाता है उससे रूप का अनुमान होता है पहले का रूपक्षण सजातीय अन्यरूप क्षण रूप कार्य को उत्पन्न करता हुआ ही विजातीय इस लक्षण कार्य को करता है, इस 93