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________________ 245. वचन को अनुमानपना कहने में प्रयोजन क्या है ? वह यह है कि प्रतिज्ञा, हेतु आदिक अनुमान के अवयव हैं ऐसा शास्त्र में व्यवहार है। ज्ञानात्मक और निरंश अर्थात् अवयव रहित अनुमान में प्रतिज्ञा हेतु आदि के व्यवहार की कल्पना करना अशक्य है। वह अनुमान दो प्रकार का है इत्यादि रूप से उसके प्रकाश को भी विस्तार से कहकर अन्यथानुपपन्नत्व रूप लक्षण की अपेक्षा साधन एक प्रकार का होने पर भी अति संक्षेप से भेद करने पर वह दो प्रकार का है- यह दिखलाते हैं - . . स हेतुर्द्वधोपलब्ध्यनुपलब्धिभेदात्॥ 53 // सूत्रान्वय : सः = वह, हेतुः = हेतु, द्वेधा = दो प्रकार का, उपलब्धि = उपलब्धि, अनुपलब्धि = अनुपलब्धि, भेदात् = भेद से। सूत्रार्थ : अविनाभाव लक्षण वाला वह हेतु दो प्रकार का है, उपलब्धि और अनुपलब्धि के भेद से। संस्कृतार्थ : हेतु ढिविधः उपलब्धिरूपोऽनुपलब्धिरूपश्च। टीकार्थ : हेतु के दो प्रकार हैं उपलब्धिरूप और अनुपलब्धिरूप। 246. उपलब्धि और अनुपलब्धि का अर्थ क्या है ? / उपलब्धि नाम विद्यमान का है और अनुपलब्धि नाम अविद्यमान का है। उपलब्धि विधि की साधिका ही है, अनुपलब्धि प्रतिषेध की साधिका ही है, इस प्रकार दूसरे मत वालों के नियम का निषेध करते हुए आचार्य कहते हैं कि उपलब्धि और अनुपलब्धि सामान्य रूप से विधि और प्रतिषेध के साधक हैं। उपलब्धिर्विधिप्रतिषेधयोरनुपलब्धिश्च॥ 54 // सूत्रान्वय : उपलब्धिः = उपलब्धि, विधिप्रतिषेधयोः = विधि के प्रतिषेध के, अनुपलब्धिः = अनुपलब्धि, च = और।.. सूत्रार्थ : उपलब्धिरूप हेतु भी विधि और प्रतिषेध दोनों का साधक है तथा अनुपलब्धिरूप हेतु भी दोनों का साधक है। ... 91:
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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