________________ तद्वचनमपि तद्धेतुत्वात्॥ 52 // सूत्रान्वय : तत् = परार्थानुमान के प्रतिपादक, वचनम् = वचनों को, अपि = भी, हेतुत्वात् = कारण होने से। / सूत्रार्थ : परार्थानुमान के कारण होने से परार्थानुमान के प्रतिपादक वचनों को भी परार्थानुमान कहते हैं। संस्कृतार्थ : स्वार्थानुमानस्य कार्यत्वात् परार्थानुमानस्य कारणत्वाच्च परार्थानुमान प्रतिपादकवचनमपि उपचारतः परार्थानुमानं प्रोच्यते / . टीकार्थ : स्वार्थानुमान का कार्य होने से परार्थानुमान का कारण होने से परार्थानुमान का प्रतिपादक वचन भी उपचार से परार्थानुमान कहा जाता है। 241. तद्वचन किसे कहते हैं ? साध्य साधन का प्रतिपादन करने वाले पुरुष का ज्ञान लक्षणभूत अनुमान है कारण जिसका, उसको तद्वचन कहते हैं। 242. तत् हेतुत्व किसे कहते हैं ? प्रतिपाद्य शिष्यादि पुरुष के ज्ञान लक्षण रूप अनुमान का जो कारण है उसे तत् हेतुत्वं कहते हैं। .. 243.(अ) - उपचार की प्रवृत्ति कब होती है ? मुख्य का अभाव होने पर तथा प्रयोजन और निमित्त के होने पर उपचार की प्रवृत्ति होती है। 243. (ब) - यहाँ किसमें किसका उपचार किया गया है ? यहाँ अनुमान के कारण वचनों में ज्ञानरूप कार्य का उपचार किया गया 244. सूत्र अर्थ का सम्बन्ध कैसा करना चाहिए ? परार्थानुमान का प्रतिपादक जो वक्ता पुरुष उसका स्वार्थानुमान है कारण जिसके ऐसा जो परार्थानुमान का वचन वह भी अनुमान है। ऐसा सम्बन्ध करना चाहिए। इस पक्ष में कारण का उपचार किया गया है, इतना अर्थसूत्र में शेष है। 90.3