________________ टीकार्थ : पर के उपदेश की अपेक्षा से रहित स्वयं ही निश्चित होने से धूमादि साधन से पर्वत आदि धर्मी में अग्नि आदि साध्य का जो विशेष ज्ञान होता है, वह स्वार्थानुमान कहा जाता है। विशेष : दूसरे के उपदेश के बिना स्वतः ही साधन से साध्य का जो अपने लिए ज्ञान होता है, उसे स्वार्थानुमान कहते हैं। अब अनुमान के दूसरे भेद का स्वरूप बतलाने के लिए सूत्र कहते हैं - परार्थं तु तदर्थ परामर्शिवचनाज्जातम्॥ 51 // सूत्रान्वय : परार्थं = परार्थानुमान, तु = परन्तु, तत् = उस स्वार्थानुमान के विषयभूत, अर्थ = पदार्थ का, परामर्श = परामर्श करने वाले, वचनात् = वचनों से, जातम् = उत्पन्न होता है। __ सूत्रार्थ : उस स्वार्थानुमान के विषयभूत पदार्थ का परामर्श करने वाले वचनों से जो उत्पन्न होता है, उसे परार्थानुमान कहते हैं। संस्कृतार्थ : स्वार्थानुमानगोचरार्थप्रतिपादकवचनेभ्यः समुत्पन्नं यत्साधनज्ञानं तन्निमित्तिकं साध्यविज्ञानं परार्थानुमानं निगद्यते। टीकार्थ : स्वार्थानुमान के गोचरभूत पदार्थ साध्य और साधन को कहने वाले वचनों से उत्पन्न हुआ जो साधन ज्ञान उसके निमित्त जो साध्य का ज्ञान होता है वह परार्थानुमान कहा जाता है। विशेष : उस स्वार्थानुमान का अर्थ जो साध्य-साधन लक्षण वाला पदार्थ उसे तदर्थपरामर्षि कहते हैं। ऐसे तदर्थ परामर्षि वचनों से जो विज्ञान उत्पन्न होता है वह परार्थानुमान है ऐसा जानना चाहिए। 240. परार्थानुमान किसे कहते हैं ? दूसरे के वचनों के द्वारा साधन से जो साध्य का ज्ञान होता है, वह परार्थानुमान है और दूसरों के वचनों के बिना जो स्वयं साधन से जो साध्य का ज्ञान होता है, वह स्वार्थानुमान है यही दोनों में भेद है। परार्थानुमान के प्रतिपादक वचनों की उपचार से परार्थानुमान संज्ञा है, यह बतलाने के लिए सूत्र कहते हैं - 89