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________________ इस प्रकार मतभेद की अपेक्षा दो, तीन और पाँच अवयव रूप जो अनुमान है वह दो प्रकार का ही है यह दिखलाते हुए आचार्य सूत्र कहते हैं - तदनुमानं द्वेधा॥48॥ सूत्रान्वय : तत् = वह, अनुमानं = अनुमान, द्वेधा = दो प्रकार का। सूत्रार्थ : वह अनुमान दो प्रकार का है। संस्कृतार्थ : अनुमानं द्विविधम्। टीकार्थ : वह अनुमान दो प्रकार का है। अब आचार्य भगवन् उन दोनों भेदों को बतलाते हैं - स्वार्थपरार्थभेदात्॥ 49 // सूत्रान्वय : स्वार्थ = स्वार्थ, परार्थ = परार्थ, भेदात् = भेद से। सूत्रार्थ : स्वार्थ और परार्थ के भेद से अनुमान के 2 भेद हैं। संस्कृतार्थ : स्वार्थानुमानं, परार्थानुमानं चेत्यनुमानस्य दो भेदौ स्तः। टीकार्थ : स्वार्थानुमान और परार्थानुमान इस प्रकार अनुमान के 2 भेद हैं। 239. सूत्र का अभिप्राय क्या है ? स्व और पर के विवाद का निराकरण करना ही दोनों प्रकार के अनुमानों का फल है अर्थात् स्वविषयक विवाद का निराकरण करना स्वार्थनुमान है और परविषयक विवाद का निराकरण करना परार्थानुमान का फल है। अब स्वार्थानुमान का स्वरूप बतलाते हुए आचार्य सूत्र कहते हैं - स्वार्थमुक्तलक्षणम्॥ 500 सूत्रान्वय : स्वार्थम् = स्वार्थ का, उक्त = कहा गया, लक्षणम् = लक्षण (स्वरूप)। सूत्रार्थ : स्वार्थानुमान का लक्षण कहा जा चुका है। संस्कृतार्थ : परोपदेशमनपेक्ष्य स्वयमेव निश्चितात् धूमादिसाधनात् पर्वतादौ धर्मिणि बह्रयादेः साध्यस्य यद् विज्ञानं जायते तत्स्वार्थानुमानं निगद्यते। 88
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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