________________ विशेष : (जन्यजनकादि भावरूप) साध्य से व्याप्त अविनाभाव से निश्चित साधन व्याप्ति पूर्वक जहाँ दिखलाया जाता है वह भाव है। धूम और जल की व्याप्ति नहीं है, क्योंकि वहाँ जन्य जनक भाव नहीं है। परन्तु धूम और अग्नि में जन्य-जनक भाव पाया जाता है जैसे सम्यग्दर्शन और सम्यक्ज्ञान। अनंतचतुष्टय और अरहंत / इसमें अनंतचतुष्टय साधन है और अरहंत हैं साध्य जहाँ-जहाँ अनंत चतुष्टय है वहाँ-वहाँ अरहंतपना निश्चित है। व्यतिरेक दृष्टान्त का स्वरूप और लक्षण दिखलाते हैं - सध्याभावे साधनाभावो यत्र कथ्यते स व्यतिरेक दृष्टान्तः॥45॥ सूत्रान्वय : साध्याभावे = साध्य के अभाव में, साधनाभावः = साधन का अभाव, यत्र = जहाँ, कथ्यते = कहा जाता है, सः = वह, व्यतिरेक = व्यतिरेक दृष्टान्त है। सूत्रार्थ : जहाँ पर साध्य के अभाव में साधन का अभाव कहा जावे वह व्यतिरेक दृष्टान्त है। संस्कृतार्थ : साध्याभावे साधनाभावो यत्र प्रदशर्यते स व्यतिरेकदृष्टान्तः प्रोच्यते। टीकार्थ : साध्य के अभाव में साधन का अभाव जहाँ पर दिखलाया जाता है, वह व्यतिरेक दृष्टान्त कहलाता है। 236. व्यतिरेक किसे कहते हैं ? साध्य के अभाव में साधन का अभाव व्यतिरेक है। 237. व्यतिरेक दृष्टान्त किसे कहते हैं ? व्यतिरेक प्रधान दृष्टान्त को व्यतिरेक दृष्टान्त कहते हैं। नोट - प्रस्तुत सूत्र में साध्य के अभाव में साधन का अभाव ही हो इस . प्रकार एवकार यहाँ जानना चाहिए। उपनय का लक्षण एवं स्वरूप दिखलाते हैं - हेतोरुपसंहार उपनयः॥ 46 // ... सूत्रान्वय : हेतोः = हेतो के, उपसंहार = उपसंहार, उपनयः = उपनय।. 86