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________________ दृष्टान्त के भेद दिखलाते हैं - दृष्टान्तो द्वधा, अन्वयव्यतिरेकभेदात्॥ 43 // सूत्रान्वय : दृष्टान्तः = दृष्टान्त, द्वेधा = दो प्रकार का, अन्वय = अन्वय, व्यतिरेक = व्यतिरेक के, भेदात् = भेद से। सूत्रार्थ : दृष्टान्त दो प्रकार का है -अन्वय और व्यतिरेक। संस्कृतार्थ : दृष्टौ. अन्तौ साध्यसाधनलक्षणौ धर्मों अन्वयमुखेन व्यतिरेकमुखेन वा यत्र सः दृष्टान्तः। स हि द्विविधः अन्वयदृष्टान्तो व्यतिरेकदृष्टान्तश्चेति। ___टीकार्थ : जहाँ पर साध्य-साधन लक्षण वाले दो धर्म अन्वय या व्यतिरेक रूप से देखे जायें, वह दृष्टान्त है, इस प्रकार के अर्थ का अनुसरण करने वाली संज्ञा जानना चाहिए। वह दो प्रकार का है - 1. अन्वय दृष्टान्त, 2. व्यतिरेक दृष्टान्त। 235. दृष्टान्त किसे कहते हैं ? जहाँ पर साध्य और साधन लक्षण वाले दोनों धर्म अन्वय मुख से अथवा व्यतिरेक मुख से देखे जायें, वह दृष्टान्त कहलाता है। अन्वय दृष्टान्त का लक्षण दिखलाते हैं -- साध्यव्याप्तं साधनं यत्र प्रदर्श्यते सोऽन्वयदृष्टान्तः॥ 44 // सूत्रान्वय : साध्यव्याप्तं = साध्य से व्याप्त, साधनम् = साधन को, यत्र = जहाँ, प्रदर्शते = दिखाया जाता है, सः = वह, अन्वयदृष्टान्तः = अन्वयदृष्टान्त। सूत्रार्थ : साध्य के साथ जहाँ साधन की व्याप्ति दिखलाई जाती है, वह अन्वय दृष्टान्त है। ___ संस्कृतार्थ : साधनसद्भावे साध्यसद्भावो यत्र प्रदर्श्यते सोऽन्वय दृष्टान्तः। टीकार्थ : साधन के सद्भाव में साध्य का सद्भाव जहाँ दिखाया जाता है वह अन्वय दृष्टान्त है। 85
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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