________________ सूत्र पठित प्रथम वा शब्द से एवकार अर्थ लेना है, द्वितीय वा शब्द अन्य पक्ष की सूचना करता है - शेष अर्थ सरल है। कोई कहता है कि दृष्टान्तादिक के बिना मंदबुद्धि जनों को ज्ञान कराना अशक्य है। अतः पक्ष और हेतु के प्रयोग मात्र से उन्हें साध्य का ज्ञान कैसे हो जायेगा ? इसी का उत्तर इस सूत्र में देते हैं : बालव्युत्पत्यर्थं तत्त्रयोपगमे शास्त्रे एवासौ न ___ वादेऽनुपयोगात्॥ 42 // सूत्रान्वय : बाल = मंदबुद्धि वाले, व्युत्पत्यर्थं = ज्ञान कराने के लिए, तत् = उन, त्रय = तीन (उदाहरण उपनय, निगमन की), उपगमे = स्वीकारता, शास्त्रे = शास्त्र में, एव = ही, असौ = उनकी, न = नहीं, वादे = वाद में, अनुपयोगात् = उपयोग में न होने से। सूत्रार्थ : मंदबुद्धि वाले बालकों की व्युत्पत्ति के लिए उन उदाहरणादि तीन अवयवों के मान लेने पर भी शास्त्र में ही उनकी स्वीकारता है, वादकाल में नहीं क्योंकि वाद (शास्त्रार्थ) में उनका उपयोग नहीं है। संस्कृतार्थ : मंदमतीनां शिष्याणां सम्बोधनार्थमुदाहरणादित्रयप्रयोगाभ्युपगेऽपि वीतरागकथायामेव ज्ञातव्यो न तु बिजिगीषु कथायाम्। तत्र तस्यानुपयोगात् / न हि वादकाले शिष्याः व्युत्पाद्याः व्युत्पन्नानामेव तत्राधिकारात्। टीकार्थ : मंदमती वाले शिष्यों को समझाने के लिए उदाहरण, उपनय, निगमन इन तीनों का प्रयोग स्वीकारने पर भी उनका प्रयोग वीतराग कथा में ही जानना चाहिए परन्तु विजिगीषु कथा में नहीं, क्योंकि विजगीषु कथा में बालक अनुपयोगी होने से वाद के समय शिष्यों को समझाया नहीं जाता, क्योंकि वाद में तो व्युत्पन्न पुरुषों का ही अधिकार होता है। 234. कथा कितने प्रकार की होती है एवं उनका स्वरूप क्या है ? __ इस प्रश्न का समाधान प्रथम परिच्छेद के प्रथम सूत्र में किया गया है। बाल व्युत्पत्ति के लिए उन तीनों को स्वीकार किया गया है अतः शास्त्र में स्वीकृत उन उदाहरणादिक तीनों अवयवों का स्वरूप दिखलाते हुए प्रथम 84