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________________ 231. इस सूत्र में एवं पद को क्यों ग्रहण किया है ? यहाँ पर दिये गये एवं पद से दृष्टान्तादिक के बिना यह अर्थ लेना है। 232. यौगमतानुसारियों के उपनय और निगमन अनुमान के अंग हैं ? यह निराकरण कैसे किया ? क्योंकि हेतु और साध्य के बोलने से साध्य धर्म वाले धर्मी में संशय नहीं रहता। अनुमान के प्रयोग में केवल हेतु की आवश्यकता और उदाहरण आदि की अनावश्यकता - समर्थनं वा वरं हेतुरूपमनुमानावयवो वास्तु साध्ये तदुपयोगात्॥ 41 // सूत्रान्वय : समर्थनं = समर्थन ही, वा = ही, वरं = श्रेष्ठ (वास्तविक), हेतुरूपम् = हेतु का स्वरूप है, अनुमानावयवः = अनुमान का अंग, वा = अन्य का संकेत, अस्तु = हो, साध्ये = साध्य की सिद्धि में, उपयोगात् = उपयोग होने से। सूत्रार्थ : समर्थन ही हेतु का वास्तविक स्वरूप है, अतः वही अनुमान का अवयव माना जाए, क्योंकि साध्य की सिद्धि में उसी का उपयोग होता है। संस्कृतार्थ : किञ्च दृष्टान्तादिकमभिधायापि समर्थनमवश्यं करणीयमसमर्थितस्याहेतुत्वादिति / तथा च समर्थनमेव वास्तविक हेतु स्वरूपमनुमानावयवो वा भवतु, साध्यसिद्धौ तस्यैवोपयोगानोदाहरणादिकस्येति। .. टीकार्थ : कोई कहता है दृष्टान्त आदिक को कह करके भी समर्थन अवश्य ही करना चाहिए क्योंकि जिस हेतु का समर्थन न हुआ हो, वह हेतु ही नहीं हो सकता। इसलिए वह समर्थन हवी हेतु का उत्तमरूप है और उसे ही अनुमान का अवयव मानना चाहिए, क्योंकि साध्य की सिद्धि में उसका ही उपयोग है, उदाहरण आदि का नहीं कहना चाहिए। 233. सूत्र में दो स्थानों पर वा शब्द का प्रयोग है, उन्हें किन-किन अर्थों में ग्रहण करना है ? 83
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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