________________ ऐसे पुरुष को हेतु के दिखलाने से ही व्याप्ति सिद्ध हो जाती है और जिसने सम्बन्ध को ग्रहण नहीं किया है, ऐसे व्यक्ति को सैकड़ों दृष्टान्तों से भी स्मरण नहीं होगा, क्योंकि स्मरण का विषय अनुभूत है। अतः इस प्रकार उदाहरण का प्रयोग साध्य के लिए उपयोगी नहीं है, अपितु संशय का ही हेतु है इस बात को दिखलाते हैं एवं उपनय और निगमन के प्रयोग बिना उदाहरण प्रयोग से हानि - तत्परमभिधीयमानं साध्यधर्मिणि साध्यसाधने संदेहयति॥38॥ सूत्रान्वय : तत् = वह, परम् = केवल, अभिधीयमानं = कहा जाने वाला, साध्यधर्मिणि = साध्य विशिष्ट धर्मी में, साध्यसाधने = साध्य के साधन करने में, संदेहयति = संदेह करा देता है। सूत्रार्थ : उपनय और निगमन के बिना यदि केवल उदाहरण का प्रयोग किया जायेगा तो साध्य धर्म वाले धर्मी (पक्ष) में साध्य और साधन के सिद्ध करने में संदेह करा देगा। संस्कृतार्थ : केवलं प्रयुज्यमानं तदुदाहरणं साध्यविशिष्टे धर्मिणि साध्यसाधने संदिग्धे करोति / दृष्टान्तधर्मिणि साध्यव्याप्तसाधनोपदर्शनेऽपि साध्य धर्मिणि तन्निर्णस्य कर्तुमशक्यत्वात्। टीकार्थ : केवल कहा गया वह उदाहरण साध्यधर्मी में साध्य विशिष्ट धर्मी में साध्य के साधन करने में संदेहयुक्त कर देता है। दृष्टान्त धर्मी (रसोईघर) साध्य से व्याप्त साधन के दिखलाने पर भी साध्य धर्म (पर्वतादि) में साध्य व्याप्त साधन का निर्णय करना संभव नहीं है। इसी अर्थ को व्यतिरेक मुख से समर्थन करते हुए कहते हैं अर्थात् केवल उदाहरण प्रयोग से संदेह होने का स्पष्टीकरण - कुतोऽन्यथोपनयनिगमने // 39 // सूत्रान्वय : कुतः = क्यों, अन्यथा = अन्यथा, उपनय निगमने = उपनय और निगमन का। सूत्रार्थ : अन्यथा उपनय और निगमन का प्रयोग क्यों किया जाता ?