________________ 224. सूत्र में एवकार का प्रयोग क्यों किया गया है ? सूत्र पठित एव पद से उदाहरणादिक का व्यवच्छेद सिद्ध होने पर भी अन्य मतों के निराकरण करने के लिए उदाहरणादिक नहीं ऐसा पुनः कहा है। इतने पर भी लोग उदाहरण का प्रयोग आवश्यक मानते हैं, आचार्य उससे पूछते हैं कि क्या साध्य का ज्ञान कराने के लिए उदाहरण का प्रयोग आवश्यक है, अथवा हेतु का अविनाभाव सम्बन्ध बतलाने के लिए अथवा व्याप्ति का स्मरण करने के लिए ? इन तीन प्रकार विकल्प उठाकर आचार्य क्रम से दूषण देते हुए सूत्र कहते हैं :न हि तत्साध्यप्रतिपत्त्यंगं तत्र यथोक्त हेतोरेव व्यापारात्॥34॥ सूत्रान्वय : न = नहीं, हि = क्योंकि, तत् = वह, साध्य = साध्य का, प्रतिपत्ति = ज्ञान कराने के लिए, वा = निश्चय अर्थ में, त्रिधा = तीन प्रकार के, हेतुम् = हेतु को, अंग = कारण, तत्र = ज्ञान में, यथोक्त = जैसा कहा, हेतोः = हेतु का, एव = ही, व्यापारात् = व्यापार होने से। सूत्रार्थ : वह उदाहरण साध्य का ज्ञान कराने के लिए कारण नहीं है, . क्योंकि साध्य के ज्ञान में यथोक्त हेतु का ही व्यापार होता है। संस्कृतार्थ : साध्यं प्रज्ञापनार्थम् उदाहरणप्रयोगः समीचीन इति चेन्न साध्याविनाभावित्वेन निश्चितस्य हेतोरेव साध्यज्ञानजनकत्व सामर्थ्यात् / टीकार्थ : साध्य का ज्ञान कराने के लिए उदाहरण का प्रयोग समीचीन है इस प्रकार कहते हैं तो ठीक नहीं है क्योंकि साध्य का अविनाभावी होने से निर्दोष हेतु ही साध्य के ज्ञान कराने के लिए समर्थ है। 225. सूत्र अर्थ का सम्बन्ध कैसा करना चाहिए ? वह उदाहरण साध्य का प्रतिपत्ति (ज्ञान) का अंग अर्थात् कारण नहीं है। ऐसा सूत्रार्थ है। 226. यथोक्त का क्या अर्थ है ? साध्य के साथ अविनाभाव रूप से निश्चित हेतु का व्यापार होता है। 77