________________ साध्य ही धर्म है उसका आधार (पक्ष) उसमें यदि संदेह हो कि इस साध्य रूप धर्म का आधार यहाँ रसोई घर आदि है या पर्वत है उसका अपनोद व्यवच्छेद करने के लिए गम्यमान भी यदि पक्ष का प्रयोग न किया जाए तो साध्य-साधन के व्याप्य-व्यापक भावरूप सम्बन्ध का प्रदर्शन नहीं बन सकता। पक्ष के प्रयोग करने की आवश्यकता का दृष्टान्त - .:. साध्यधर्मिणि साधनधर्मावबोधनाय पक्षधर्मोपसंहारवत्॥31॥ __ सूत्रान्वय : साध्यधर्मिणि = साध्य से युक्त धर्मी में, साधनधर्म = . साधनधर्म, अवबोधनाय = ज्ञान कराने के लिए, पक्षधर्म = पक्षधर्म के, उपसंहारवत् = उपसंहार के समान। सूत्रार्थ : जैसे साध्य से युक्त धर्मी में साधन धर्म का ज्ञान कराने के लिए पक्ष धर्म के उपसंहारं रूप उपनय का प्रयोग किया जाता है। , संस्कृतार्थ : साध्यव्याप्तसाधनप्रदर्शनेन तदाधारावगतावपि नियतधर्मिसम्बन्धितोप्रदर्शनार्थं यथोपनयः प्रयुज्यते तथा साध्यस्य विशिष्ट धर्मिसम्बन्धितावबोधनार्थं पक्षोऽपि प्रयोक्तव्यः। . टीकार्थ : साध्य के साथ व्याप्त साधन के प्रदर्शन से उसके आधार के अवगत हो जाने पर भी नियत धर्मी के साथ सम्बन्धपना बतलाने के लिए जैसे उपनंय का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार साध्य का विशिष्ट धर्मी के साथ सम्बन्धपना बतलाने के लिए जैसे - उपनय आवश्यक है, उसी प्रकार साध्य का विशिष्ट धर्मी के साथ सम्बन्धपना बतलाने के लिए पक्ष का वचन भी आवश्यक है। . . 213. उपनय किसे कहते हैं ? ... . ........ साध्य से विशिष्ट जो धर्मी पर्वत आदि उसमें साधन धर्म का ज्ञान करने ' के लिए पक्ष धर्म के उपसंहार के समान पक्ष धर्म जो हेतु उसके उपसंहार को उपनय कहते हैं। 214. हेतु का समर्थन करने पर भी समर्थन आवश्यक क्यों है ? : 74.