________________ सूत्रार्थ : अन्यथा व्याप्ति घटित नहीं हो सकती। संस्कृतार्थ : व्याप्तिकालेऽपि धर्मिणः साध्यत्वे धर्मिसाधनयोः व्याप्त्यघटनात्। टीकार्थ : व्याप्ति काल में भी धर्मी को साध्य करने पर धर्मी और साधन की व्याप्ति नहीं बन सकेगी। 209. सूत्र में अन्यथा शब्द क्यों ग्रहण किया है ? . अन्यथा शब्द ऊपर कहे गये अर्थ के विपरीत अर्थ में कहा गया है। 210. सूत्र में हेतु क्या है ? धर्मी को साध्य बनाने पर व्याप्ति नहीं बनती है, यह हेतु है। 211. कैसी व्याप्ति संभव नहीं है ? धुएँ के देखने से सब जगह पर्वत अग्निवाला है, इस प्रकार की व्याप्ति करना संभव नहीं है, क्योंकि (साध्य साधन भाव के असंभव होने से) प्रमाण से विरोध आता है। पक्ष के प्रयोग करने की आवश्यकता - साध्यधर्माधारसन्देहापनोदाय गम्यमानस्यापि पक्षस्य वचनम्॥30॥ __ सूत्रान्वय : साध्य धर्म = साध्य रूप धर्म के, आधार = आधार के विषय में, संदेह = संशय को, अपनोदाय = दूर करने के लिए, गम्यमानस्य = गम्यमान के, अपि = भी, पक्षस्य = पक्ष के, वचनम् = वचन को। ___ सूत्रार्थ : साध्य धर्म के आधार में उत्पन्न हुए संदेह को दूर करने के लिए गम्यमान भी पक्ष का प्रयोग किया जाता है। संस्कृतार्थ : साध्यरूपधर्माधिकरण समुत्थसंशयनिवारणाय स्वयं सिद्धस्यापि पक्षस्य प्रयोगः आवश्यकः / टीकार्थ : साध्यरूप धर्म के आधार के विषय में उत्पन्न हुए संदेह को दूर करने के लिए स्वयं सिद्ध भी पक्ष का प्रयोग आवश्यक है। 212. हेतु की सामर्थ्य से ज्ञात होने वाले पक्ष का प्रयोग आवश्यक क्यों है? 73