________________ संस्कृतार्थ : प्रमाणसिद्धे उभयसिद्धे वा धर्मिणि साध्यधर्मविशिष्टतैव साध्या भवति। टीकार्थ : प्रमाण सिद्ध धर्मी में और प्रमाण विकल्प सिद्ध धर्मी में धर्म से सहित धर्मी साध्य होता है। 206. साध्ये पूर्व सूत्र में द्विवचनांत है फिर यहाँ एकवचन में प्रयुक्त क्यों किया ? पूर्वसूत्र में द्विवचनांत होते हुए भी अर्थ के वश से एक वचनांत के रूप से सम्बद्ध किया है। प्रमाण और उभय अर्थात् विकल्प और प्रमाण इन दोंनो से सिद्ध धर्मी में साध्य धर्म विशिष्टता साध्य है। 207. प्रस्तुत सूत्र का भावार्थ क्या है ? प्रमाण से जानी गई वस्तु (पर्वतादि) विशिष्ट धर्म का आधार होने से विवाद का विषय हो जाती है, साध्यता का उल्लंघन नहीं करती है। इस प्रकार उभयसिद्ध में भी योजना करना चाहिए। .. . प्रमाण सिद्ध और उभय सिद्ध दोनों धर्मियों के दृष्टान्त क्रम को दिखलाते हुए कहते हैं - . . . . . . . . अग्निमानयं देश: परिणामी शब्द इति यथा॥27॥ . सूत्रान्वय : अग्निमान् = अग्निवाला, अयम् = यह, देशः = प्रदेश, परिणामी = परिणमन वाला, शब्दः = शब्द, इति = इस प्रकार, यथा = जैसे। . : सूत्रार्थ : जैसे यह प्रदेश अग्निवाला है और शब्द परिणामी है। संस्कृतार्थ : अग्निमानयं प्रदेशः धूमवत्वात् इति प्रमाणसिद्धधर्मिणः उदाहरणम् / यतः पर्वतादिप्रदेशाः प्रत्यक्षादिप्रमाणैः सिद्धाः विद्यन्ते / तथा च शब्द परिणामी कृतकत्वात् इति प्रमाणविकल्पसिद्धधर्मिणः उदाहरणम्। यतः अत्र धर्मी शब्दः उभयसिद्धो विद्यते। स हि वर्तमान कालिंकः प्रत्यक्षगम्यः भूतो भविष्यंश्च विकल्पगम्यो वर्तते। . ... . . टीकार्थ : यह प्रदेश अग्निवाला है धूम वाला होने से, इस प्रकार प्रमाण सिद्ध धर्मी का उदाहरण है, क्योंकि पर्वतादि प्रदेश प्रत्यक्ष आदि. प्रमाण 71