________________ सूत्रार्थ : धर्मी प्रसिद्ध अर्थात् प्रमाण से सिद्ध होता है, काल्पनिक नहीं। संस्कृतार्थ : धर्मी (पक्षः) प्रसिद्धो विद्यते,अवस्तुस्वरूपः,कल्पितो वा नो विद्यते // 23 // टीकार्थ : धर्मी (पक्ष) प्रसिद्ध होता है अवस्तुस्वरूप और कल्पित नहीं होता है। धर्मी की विकल्प से प्रतिपत्ति मानने पर वहाँ साध्य क्या है ? ऐसी शंका का निराकरण करने के लिए यह सूत्र दिया जाता है - विकल्पसिद्धे तस्मिन् सत्तेतरे साध्ये॥24॥ सूत्रान्वय : विकल्पसिद्ध = विकल्पसिद्धे (धर्मी में) तस्मिन् = उसमें, सत्ता = अस्तित्व, इतर = असत्ता (नास्तित्व), साध्ये = दोनों साध्य हैं। सूत्रार्थ : उस विकल्प सिद्ध धर्मी में सत्ता और असत्ता ये दोनों ही साध्य हैं। संस्कृतार्थ : तस्मिन् धर्मिणि विकल्पसिद्धे सति अस्तित्वं नास्तित्वं चेत्युभे साध्ये भवतः। टीकार्थ : उस धर्मी के विकल्प सिद्ध होने पर सत्ता (सद्भाव - मौजूदगी) और असत्ता (असद्भाव - गैरमौजूदगी) दोनों साध्य होते हैं। 201. विकल्प किसे कहते हैं ? जिस पक्ष का न तो किसी प्रमाण से अस्तित्व सिद्ध हो और न नास्तित्व सिद्ध हो उस पक्ष को विकल्प सिद्ध कहते हैं। इसी बात को न्यायदीपिका में इस प्रकार कहा है - अनिश्चितप्रामाण्य गोचरत्वं विकल्पसिद्धत्वम् / 202. विकल्पसिद्ध धर्मी में सत्ता साध्य क्यों है ? सुनिश्चित असम्भव बाधक प्रमाण के बल से सत्ता साध्य है। 202. विकल्प सिद्ध धर्मी में असत्ता साध्य क्यों है ? योग्य की अनुपलब्धि के बल से असत्ता साध्य है। 69