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________________ लक्षण में इष्ट विशेषण दिया है। 194. साध्य के लक्षण में अबाधित विशेषण क्यों दिया जाता है ? जिस पदार्थ को हम सिद्ध करना चाहते हैं, वह कदाचित् दूसरे प्रमाण से बाधित हो तो प्रमाणान्तर उसे सिद्ध नहीं कर सकता अर्थात् जो किसी दूसरे प्रमाण से बाधित होगा वह भी साध्य नहीं हो सकता। इस बात को स्पष्ट करने के लिए साध्य के लक्षण में अबाधित वचन दिया गया है। साध्य के लक्षण में तीनों विशेषणों के मध्य में असिद्ध पद प्रतिवादी की अपेक्षा ही ग्रहण किया है, इष्टपद वादी की अपेक्षा ग्रहण किया है, ऐसा भेद प्रदर्शित करने के लिए यह सूत्र कहते हैं - . न चासिद्धवदिष्टं प्रतिवादिनः // 19 // सूत्रान्वय : न = नहीं, च = और, असिद्धवत् = असिद्ध के समान, प्रतिवादिनः = प्रतिवादी की अपेक्षा से, इष्टं = इष्ट। . सूत्रार्थ : असिद्ध के समान इष्ट विशेषण प्रतिवादी की अपेक्षा से नहीं है। संस्कृतार्थ : न हि सर्वं सर्वापेक्षया विशेषणमपि तु किञ्चित्किमप्युद्दिश्य भवतीति / असिद्धवदिति व्यतिरेकमुखेनोदाहरणम्। यथा असिद्ध विशेषणं प्रतिवाद्यपेक्षया प्रोक्तं न तथा इष्टविशेषणमितिभावः। ___ टीकार्थ : सभी विशेषण सभी की अपेक्षा से नहीं होते हैं, अपितु कोई विशेषण किसी की अपेक्षा होता है। असिद्ध के समान यह व्यतिरेकमुख से उदाहरण दिया गया है जैसे - असिद्ध विशेषण प्रतिवादी की अपेक्षा कहा गया, वह उस प्रकार से इष्ट नहीं है अर्थात् असिद्ध विशेषण वादी की अपेक्षा कहा गया है। 195. वादी किसे कहते हैं ? जो पहले अपने पक्ष को स्थापित करता है, उसे वादी कहते हैं। 195. प्रतिवादी किसे कहते हैं ? ___ जो उसका निराकरण करता है, उसे प्रतिवादी कहते हैं। 66
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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