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________________ में नहीं। 191. असंदिग्धादि पदार्थों के लिए अनुमान की आवश्यकता क्यों नहीं होती ? क्योंकि वे पदार्थ पहले से सिद्ध हैं अर्थात् उनका अनुमान बनाना पिष्टपेषण हो जाएगा। अब साध्य के इष्ट और अबाधित इन-इन विशेषणों की सफलता दिखलाते हैं - अनिष्टाध्यक्षादिबाधितयोः साध्यत्त्वं मा भूदितीष्टाबाधितवचनम्॥ 18 // सूत्रान्वय : अनिष्ट = जो इष्ट न हो, अध्यक्ष = प्रत्यक्ष, आदि = परोक्षादि, बाधितयोः = दोनों से बाधित, साध्यत्वं = साध्यपना, मा = नहीं, भूत = हो, इति = इस प्रकार, इष्टाबाधित = इष्ट - अबाधित, वचनम् = वचन। सूत्रार्थ : अनिष्ट और प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित पदार्थों के साध्यपना न माना जाए, इसलिए इष्ट और अबाधित ये दो विशेषण दिए गए हैं। संस्कृतार्थ : अनिष्टस्य प्रत्यक्षादिबाधितस्य च पदार्थस्य साध्यत्वं निरासार्थम् इष्टाबाधितपदयोरुपादानं कृतम्। ___टीकार्थ : अनिष्ट के और प्रत्यक्ष, परोक्षादि प्रमाण से बाधित पदार्थ के साध्यपना का निराकरण करने के लिए इष्ट और अबाधित इन दो पदों को ग्रहण किया गया है। 192. अनिष्ट किसे कहते हैं ? __ जिस वस्तु को वादी सिद्ध नहीं करना चाहता है, उसे अनिष्ट कहते हैं। 192. सूत्र में आदि शब्द से किसे ग्रहण करना है ? आदि शब्द से परोक्ष से, अनुमान से, आगम से, लोक से तथा स्ववचन से बाधित इन परोक्षप्रमाण के भेदों का ग्रहण किया जाता है। 193. साध्य के लक्षण में इष्ट विशेषण क्यों दिया है ? जो वादी को इष्ट न हो उसे सिद्ध करना अप्रकरणिक असामयिक है ऐसी वस्तु साध्य नहीं हो सकती। उसका स्पष्टीकरण करने को साध्य के 65
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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