________________ अब अपने द्वारा कहे हुए साध्य के लक्षण के विशेषणों की सफलता बतलाते हुए असिद्ध विशेषण का समर्थन करने के लिए कहते हैं - - संदिग्धविपर्यस्ताव्युत्पन्नानां साध्यत्वं / __ यथास्यादित्यसिद्धपदम्॥17॥ सूत्रान्वय : संदिग्ध = अनिर्णीत, विपर्यस्त = विपरीतपना, अव्युत्पन्न = यथावत् निर्णीत न होना, साध्यत्वं = साध्यपना, यथा = जैसे, स्यात् = हो, इति = इस प्रकार, असिद्धपदम् = असिद्ध पद। सूत्रार्थ : संदिग्ध, विपर्यस्त और अव्युत्पन्न पदार्थों के साध्यपना जिस प्रकार से माना जा सके, इसलिए साध्य के लक्षण में असिद्ध पद दिया है। - संस्कृतार्थ : संशयविपर्ययानध्यवसायगोचराणां पदार्थानां साध्यत्व संकल्पनार्थं साध्यलक्षणेऽसिद्धपदमुपादीयते। टीकार्थ : संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय के गोचरभूत पदार्थों के साध्यपना को सिद्ध करने के लिए साध्य के लक्षण में असिद्ध पद को ग्रहण किया गया है। 187. संदिग्ध किसे कहते हैं ? .. यह स्थाणु है या पुरुष है इस प्रकार चलित प्रतिपत्ति के विषयभूत उभयकोटि के परामर्श वाली संशय से युक्त वस्तु संदिग्ध कहलाती है। 188. विपर्यस्त किसे कहते हैं ? विपरीत वस्तु का निश्चय करने वाले विपर्यय ज्ञान के विषयभूत (सीप - में) चाँदी आदि पदार्थ विपर्यस्त हैं। . . 189. अव्युत्पन्न किसे कहते हैं ? अव्युत्पन्न से नाम, जाति, संख्यादि का विशेष परिज्ञान न होने से अनिर्णीत ... विषय वाले अनध्यवसाय ज्ञान से ग्राह्य पदार्थ को अव्युत्पन्न कहते हैं। 190. अनुमान की आवश्यकता कब होती है ? जब पदार्थ में संदेहादि हो जाता है। अतः 3 प्रकार के पदार्थों की सिद्धि करने में ही हेतु की सामर्थ्य होती है इनसे विपरीत पदार्थों की सिद्धि करने 64