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________________ सूत्रार्थ : इष्ट, अबाधित और असिद्धभूत पदार्थ को साध्य कहते हैं। संस्कृतार्थ : यद् वादिनः साधयितुमिष्टं, प्रत्यक्षादिप्रमाणैरबाधितं, संशयाद्याक्रान्तं च विद्यते तत्साध्यं प्रोच्यते। ___टीकार्थ : जिसको वादी सिद्ध करना चाहता है वह इष्ट है, प्रत्यक्षादि प्रमाणों के द्वारा अबाधित और संशयादि का उल्लंघन विद्यमान है और जो सिद्ध नहीं है वह साध्य कहा जाता है। 180. सूत्र में साध्य के कितने विशेषण हैं ? इष्ट, अबाधित और असिद्ध ये तीन विशेषण हैं। 181. इष्ट किसे कहते हैं ? वादि जिसे सिद्ध करना चाहे। अथवा जो पदार्थ वादी को अभिप्रेत हो उसे इष्ट कहते हैं। 182. अबाधित किसे कहते हैं ? जो किसी भी प्रमाण से बाधित नहीं होता वह अबाधित है। 183. असिद्ध किसे कहते हैं ? अप्रतिभूत पदार्थों को असिद्ध कहते हैं, अथवा संशयादि का व्यवच्छेद .. करके पदार्थ का स्वल्प ज्ञान होना सिद्ध है, इससे विपरीत असिद्ध कहलाता है। 184. इस सूत्र में लक्ष्य और लक्षण कौन हैं ? साध्य लक्ष्य है। इष्ट, अबाधित और असिद्ध लक्षण हैं। . 185. आसन, शयन, भोजन और मिथुनादिक भी इष्ट हैं अतः इन्हें साध्यपने का प्रसंग आता है ? ऐसा कहना अत्यन्त मूर्खपना है क्योंकि ये नैयायिक अप्रस्तुत प्रलापी है। यहाँ पर साधन का अधिकार है। अतः साधन के विषय रूप से इच्छित वस्तु को ही इष्ट कहा जाता है। 186. अप्रस्तुत प्रलापी कौन कहलाते हैं ? जो बिना अवसर की बात करते हैं। 63
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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