________________ विनाभावो विद्यते। टीकार्थ : साथ-साथ रहने वालों में तथा व्याप्य और व्यापक में जो अविनाभाव सम्बन्ध होता है, उसे सहभाव नियम नामक अविनाभाव सम्बन्ध कहते हैं, जैसे रूप और रस में और व्याप्य-व्यापक में सहभाव अविनाभाव होता है। 173. सहचारी कौन कहलाता है ? . रूप और रस सहचारी कहलाते हैं। 174. व्याप्य और व्यापक कौन कहलाते हैं ? . वृक्षत्व और शिंशपात्वादि व्याप्य-व्यापक कहलाते हैं। 175. व्याप्य किसे कहते हैं ? जो एक देश या स्वल्प देश में रहता है वह व्याप्य कहलाता है। 176. व्यापक किसे कहते हैं ? .' जो अधिक देश में रहता है, वह व्यापक कहलाता है। क्रमभाव नियम का विषय दिखलाते हुए कहते हैं - पूर्वोत्तरचारिणो: कार्यकारणयोश्च क्रमभावः॥14॥ सूत्रान्वय : पूर्वचरः = पूर्वचर, उत्तर चरः = उत्तर चर, कार्यकारणयोः = कार्य कारण में, क्रमभाव : = क्रमभाव, च = और। सूत्रार्थ : पूर्वचर और उत्तर चर में तथा कार्य और कारण में क्रमभाव नियम होता है। . संस्कृतार्थ : पूर्वोत्तरचारिणोः कार्यकारणयोश्चाविनाभावः क्रमभावनियमाविनाभाव: प्रोच्यते / यथा कृतिकोदयशकटोदययोः धूमनलयोश्च क्रमभाव नियमोऽविनाभावो विद्यते। टीकार्थ : पूर्वचर और उत्तर चर में तथा कार्य और कारण में क्रमभाव नियम होता है। वह क्रमभाव अविनाभाव कहलाता है जैसे - पूर्वचर कृतिकोदय, उत्तरचर शकटोदय तथा कार्यकारण धूम और अग्नि में क्रमभाव होता है। 177. पूर्वोत्तरचारी कौन कहलाते हैं ? 61