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________________ 2. साधन का साध्य के साथ अविनाभाव होना चाहिए। 3. साध्य का साधन के साथ अविनाभाव नहीं होना चाहिए। 4. उदाहरण में धूम के होने पर अग्नि का निश्चय है, पर जहाँ पर अग्नि हो वहाँ पर धूम का होना आवश्यक नहीं है। इस समय अनुमान का क्रम प्राप्त है अतः उसके लक्षण को कहते हैं - साधनात् साध्य विज्ञानमनुमानम्॥10॥ सूत्रान्वय : सांधनात् = साधन से, साध्य = साध्य का, विज्ञानम् = विशिष्टज्ञान, अनुमानम् = अनुमान, (कथयति = कहते हैं)। सूत्रार्थ : साधन से साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं। संस्कृतार्थ : साधनाद् धूमादेः लिंगात्साध्येऽग्न्यादौ लिंगि यद्विज्ञानं जायते तदनुमानं, तस्यैवाग्न्याद्यव्युत्पत्तिविच्छित्तिकरणत्वात्तस्यैवाग्न्याद्यव्युत्पत्तिविच्छित्तिकरणत्वात्। (साधनाज्जायमानं साध्यविज्ञानमेवानुमानमिति भावः)। . टीकार्थ : साधन धूमादि लिंग से साध्य अग्नि आदिक लिंगि में जो ज्ञान होता है वह अनुमान है क्योंकि वह साध्य ज्ञान ही अग्नि आदि के अज्ञान को दूर करता है। साधन से अर्थात् जाने हुए लिंग से साध्य में अर्थात् अग्नि आदिक लिंगि में जो ज्ञान होता है वह अनुमान है। 166. साधन को ही अनुमान में कारण मान लिया जाय ना कि साधन के ज्ञान को ? ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि साधन से इस पद का अर्थ निश्चय पथ प्राप्त धूमादिक से यह विवक्षित है। जिसे जाना नहीं है वह साधन नहीं हो सकता, क्योंकि जिस धूमादि लिंग को नहीं जाना है, उसको साध्य के ज्ञान में कारण मानने पर सोये हुए अथवा जिन्होंने धूमादि लिंग को ग्रहण नहीं किया उनको भी अग्नि आदि का ज्ञान हो जायेगा। अतः यह सिद्ध हुआ कि जाने हुए साधन से होने वाला साध्य का ज्ञान ही साध्य विषयक अज्ञान को दूर करने से अनुमान है। लिंग ज्ञानादिक नहीं। 58
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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