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________________ विलक्षणं = विलक्षण (भिन्न), प्रतियोगी = किसी वस्तु का प्रतिरूप बताने वाला, इत्यादि = इस प्रकार और भी, सूत्रार्थ : दर्शन और स्मरण जिसमें कारण हैं ऐसे जोड़रूप ज्ञान को प्रत्यभिज्ञान कहते हैं। जैसे - यह वही है, यह उसके समान है यह उससे विलक्षण है, यह उसका प्रतियोगी है इत्यादि। संस्कृतार्थ : दर्शनं च स्मरणं च दर्शनस्मरणे ते कारणे यस्य तत्तथोक्ता तथा च दर्शनस्मरणहेतुकत्वे सति संकलनात्मक ज्ञानत्वं प्रत्यभिज्ञानत्वम् / तच्चैकत्वं, सादृश्य, वैलक्षण्यं, प्रातियौगिकञ्चेति चतुर्विधम् / तदेवेदमित्येकत्वप्रत्यभिज्ञानम् / तत्सदृशमिति सादृश्यप्रत्यभिज्ञानम्। तद्विलक्षणमिति वैलक्षण्यप्रत्यभिज्ञानम् / तत्प्रतियोगीति प्रातियौगिक प्रत्यभिज्ञानम्। टीकार्थ : दर्शनं च स्मरणं च दर्शन स्मरणे = यहाँ द्वन्द्व समास है, ते कारणे यस्य यहाँ बहुब्रीहि समास है। दर्शन और स्मरण में द्वन्द्व समास है और ये दोनों हैं कारण-जिसमें यह बहुब्रीहि समास है। दर्शन और स्मरण है कारण जिसके ऐसे जोड़रूप ज्ञान को प्रत्यभिज्ञान कहते हैं और वह (प्रत्यभिज्ञान) एकत्व, सादृश्य, विलक्षण और प्रतियोगी के भेद से चार प्रकार का है। 1. यह वही है इस प्रकार एकत्वप्रत्यभिज्ञान है। 2. यह उसके समान है इस प्रकार सदृशप्रत्यभिज्ञान है। . 3. यह उससे विलक्षण है यह वैलक्षण्य प्रत्यभिज्ञान है। 4. यह उसका प्रतियोगी है, इस प्रकार प्रतियोगी प्रत्यभिज्ञान है। 154. एकत्वादि को विषय करने वाले ज्ञान को प्रत्यभिज्ञानपना कैसे है ? वर्तमान का प्रत्यक्ष (दर्शन) और पूर्व का स्मरण कारण होने से एकत्व ‘सादृश्यादि के विषय करने वाले ज्ञान को प्रत्यभिज्ञानपना है। इन प्रत्यभिज्ञान के भेदों का क्रम से उदाहरण दिखलाते हुए कहते हैं - 'यथा स एवायं देवदत्तः, गोसदृशो गवयः गोविलक्षणो महिषः, इदमस्मादूरम्, वृक्षोऽयमित्यादि॥6॥ 54
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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