________________ अथ तृतीयः परिच्छेदः परोक्षस्य लक्षणं निर्णयो वा परोक्ष का लक्षण या निर्णय परोक्षमितरत्॥1॥ सूत्रान्वय : परोक्षम् = परोक्ष, इतरत् = भिन्न (प्रत्यक्ष से भिन्न) सूत्रार्थ : जो प्रत्यक्ष से इतर अर्थात् भिन्न है, वह परोक्ष है। संस्कृतार्थ : अविशदं परोक्षम् / अथवा यस्य ज्ञानस्य प्रतिभासो निर्मलो न भवति तत्परोक्षं कथ्यते। टीकार्थ : अविशद ज्ञान परोक्ष है अथवा जिस ज्ञान का प्रतिभास निर्मल नहीं होता वह परोक्ष कहा जाता है। 147. इतर शब्द से क्या अर्थ लेना है ? इतर शब्द पूर्व में कहे गये प्रमाण के प्रतिपक्ष को कहता है। 148. परोक्ष किसे कहते हैं ? प्रत्यक्ष से भिन्न अविशद स्वरूप वाला जो ज्ञान है, वह परोक्ष है। परोक्ष = परः + अक्ष = आत्मा से भिन्न इन्द्रियादि जो पर उनकी सहायता की अपेक्षा रखने वाला ज्ञान परोक्ष ज्ञान है। पराणीन्द्रियाणि आलोकादिश्च परेषां ज्ञानं परोक्षम्, पर का अर्थ इन्द्रियाँ और आलोकादि है, और पर अर्थात् इन इन्द्रियादि के अधीन जो ज्ञान होता है, वह परोक्षज्ञान है। परोक्ष के भेद और कारण को इस सूत्र में कहते हैं - प्रत्यक्षादि निमित्तं स्मृति प्रत्यभिज्ञानतर्कानुमानागम भेदम्॥2॥ सूत्रान्वय : प्रत्यक्षादि = प्रत्यक्षादि, निमित्तं = कारण, स्मृति = स्मरण, प्रत्यभिज्ञान = प्रत्यभिज्ञान, तर्क = तर्क, अनुमानं = अनुमान, आगम = आगम, भेदम् = भेद। सूत्रार्थ : प्रत्यक्षादि जिसके निमित्त हैं, ऐसा परोक्ष प्रमाण स्मृति प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम के भेद से 5 प्रकार का है। 51